Wednesday, October 13, 2021

महल फिल्म ने लता मंगेशकर को स्टारडम दिलाया बल्कि मधुबाला को भी ए लिस्ट एक्ट्रेस बनाया था।

महल फिल्म ने लता मंगेशकर को स्टारडम दिलाया बल्कि मधुबाला को भी ए लिस्ट एक्ट्रेस बनाया था।

“महल” के मेकिंग की कहानी बड़ी दिलचस्प है। 1948 में अशोक कुमार एक हिल स्टेशन पर “जिजीबॉय” हाउस के पास एक फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे, उन्होंने आधी रात को एक कार में एक रहस्यमयी महिला की बिना सिर वाली लाश देखी और उनके देखते ही देखते वो महिला जल्द ही घटनास्थल से गायब हो गई। ये बात अशोक कुमार ने अपने नौकरों को बताई। उनके नौकरों ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया और उनको कहा कि आपने जरूर कोई सपना देखा होगा। जब कुमार पास के थाने में शिकायत दर्ज कराने गए तो एक पुलिसकर्मी ने उन्हें बताया कि 14 साल पहले भी इसी जगह पर इसी तरह की घटना हुई थी- एक महिला की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी।
अशोक कुमार ने कमाल अमरोही को ये कहानी सुनाई। अमरोही इस वक्त तक 1939  में रिलीज़ हुई सोहराब मोदी की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म “पुकार” के संवाद लिख चुके थे लेकिन उन्होंने किसी फिल्म का निर्देशन नहीं किया था और वो किसी फ़िल्म का निर्देशन करना चाहते थे । कमाल अमरोही को अशोक कुमार के द्वारा सुनाई गई कहानी पसंद आई और अमरोही ने कहानी को आंशिक रूप से संशोधित कर आगे विकसित किया और फिल्म का नाम “महल ” रखा । जब ये कहानी सावक वाचा को सुनाई गई तो उन्होंने फिल्म के कथानक को खारिज कर दिया क्यों कि वो इस बात से आशंकित थे कि सस्पेंस फिल्मों को रिपीट दर्शक नहीं मिलते हैं। उनके मना करने का एक कारण बॉम्बे टॉकीज द्वारा प्रोड्यूस की गई उनकी पिछली फिल्मों ज़िद्दी (1948) और आशा(1948) की बॉक्स ऑफिस असफलता भी था । इन फिल्मों की असफलता के कारण बॉम्बे टॉकीज आर्थिक मुसीबतों का सामना कर रहा था। अशोक कुमार ने उनको समझाया कि अगर अच्छी तरह से फ़िल्म को निर्देशित किया जाता है तो फिल्म दिलचस्प बन सकती है और उन्होंने कमाल अमरोही को इस फिल्म के निर्देशक के रूप में नियुक्त कर दिया । अशोक कुमार ये कहते हुए खुद सह-निर्माण के लिए सहमत हुए कि फ़िल्म को घाटा हुआ तो वो उनकी जिम्मेदारी होगी और यहां तक कि फिल्म में अभिनय करने के लिए भी वो तैयार हो गए।उन्होंने फ़िल्म में कामिनी की भूमिका के लिए एक उपयुक्त अभिनेत्री चुनने का काम कमाल अमरोही को सौंपा। उन्होंने मधुबाला जी का चयन किया l इसके पहले कई अभिनेत्रियों से संपर्क किया गया लेकिन उनमें से ज्यादातर ने रोल सुनते ही ये रोल करने से इंकार कर दिया और जिन्होंने हां की उन्होंने अपनी फ़ीस बहूत ज्यादा डिमांड की। एक समय फ़िल्म के निर्माता वाचा द्वारा सुरैया को लीड एक्ट्रेस के रोल के लिए फाइनल कर लिया गया क्यों कि उनको लगता था कि सुरैया अशोक कुमार की जोड़ी पर्दे पर कमाल लगेगी। सुरैया ने अपनी दादी के इंकार करने के बाद फ़िल्म छोड़ दी क्यों कि उनकी दादी को फ़िल्म की कहानी पसन्द नही आई थी। इसी बीच ,15 वर्षीय मधुबाला ने ये रोल करने के लिए अपनी इच्छा जाहिर की। मधुबाला उस वक्त न्यूकमर थी और उस समय तक कुछ छोटी मोटी फिल्में कर चुकी थी। वाचा ने मधुबाला की कम उम्र और अनुभवहीनता के चलते मधुबाला को इस फ़िल्म के रोल के लिए ख़ारिज कर दिया। कमाल अमरोही ने वाचा को समझाया और कहा कि वो मधुबाला का ऑडिशन लेना चाहते हैं। मधुबाला का ऑडिशन लेते वक्त अपनी सुविधानुसार लाइट्स की व्यवस्था की। मधुबाला इस ऑडिशन में सफेद व काले कपड़ों में बहुत खूबसूरत लग रही थी। फिल्म के मुख्य अभिनेता अशोक कुमार की उम्र मधुबाला की उम्र से दोगुनी से भी ज़्यादा होने के बावजूद मधुबाला ने ये रोल हासिल किया। अशोक कुमार ने इस फ़िल्म की रिलीज़ के वर्षों बाद एक बार कहा था कि “मधुबाला सिर्फ 15 साल की थी और इतनी अनुभवहीन थी कि उसे लगभग हर शॉट के लिए कई रीटेक की जरूरत पड़ती थी, फिर भी मुझे विश्वास था कि हमने सही कास्टिंग की है और वो अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय करेगी।
विमल रॉय इस फ़िल्म में मुख्य एडिटर थे । “महल” की एडिटिंग करते वक्त वो इस फ़िल्म के कथानक से इतने प्रभावित हुए कि आगे चलकर उन्होंने इसी कथानक पर दिलीप कुमार के साथ फ़िल्म “मधुमति” बनाई थी।
इस फ़िल्म की यूनिट को शूटिंग के दौरान भी आर्थिक तंगी के चलते कई परेशानियों का सामना करना पडा। हालात ये थे कि कमाल अमरोही को अपने घर की पुरानी चीजों व वस्त्रों को फ़िल्म की शूटिंग के दौरान काम में लेना पडा क्यों कि नए खरीदने के लिए पैसे नहीं थे।
संगीतकार के तौर पर खेमचंद प्रकाश को जबकि गीतकार के तौर पर नक्षब को लिया गया। लता मंगेशकर, राजकुमारी दुबे और जोहराबाई अंबलेवाली ने गानों को अपनी आवाज दी। टुन टुन को शुरू में “आयेगा आने वाला” गाने की पेशकश की गई थी,लेकिन उन्होंने कारदार प्रोडक्शन हाऊस के साथ अपने अनुबंध के कारण इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । बाद में लता मंगेशकर ने उसी प्राचीन हवेली में ये गाना गाया,जहां फिल्म की शूटिंग हुई थी।एक और गाना जिसका शीर्षक “मुश्किल है बहुत मुश्किल” है,जो लगभग चार मिनट लंबा है,अमरोही और मधुबाला ने एक ही टेक में पूरा किया।  हर किसी की अस्वीकृति के बावजूद,अमरोही ने मधुबाला की प्रतिभा को बहुत सम्मान दिया, यह घोषणा करते हुए कि “इस फिल्म के साथ ही उनकी असली क्षमताएं सामने आईं।”
जब खेमचंद प्रकाश ने इस गीत “आएगा आने वाला” की धुन बनाई तो इसके बारे में दोनों निर्माताओं की राय अलग थी । निर्माता सावक वाचा को यह धुन बिल्कुल पसंद नहीं आई ।जबकि अशोक कुमार को यह धुन “आएगा आने वाला” अच्छी लगी । खेमचंद्र प्रकाश के संगीत में बनी इस फिल्म के गाने बहुत लोकप्रिय हुए। महल फ़िल्म के गाने “आएगा आने वाला” पहला गाना है जिसके साथ लता मंगेशकर को उनकी गायकी का श्रेय मिला । इस गीत ‘आएगा आने वाला’ में यह असर डालना था कि गाने की आवाज़ दूर से क्रमश: पास आ रही है । उन दिनों अपने देश में रिकार्डिंग की तकनीक अधिक विकसित नहीं थी लेकिन संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने इसका तोड़ निकाल लिया। रिकॉर्डिंग स्टूडियो के बीच में माइक रखा गया तथा कमरे के एक कोने से गाते गाते लता मंगेशकर धीरे धीरे चलते हुए माइक के पास पहुँची ।इस तरह गीत में वांछित प्रभाव पैदा किया गया । गीत के म्यूजिक रिकार्ड में गायिका का नाम ‘कामिनी’ छपा था। ‘कामिनी’ फ़िल्म ‘महल’ में नायिका मधुबाला का नाम था जब फ़िल्म रिलीज़ हुई तो यह गीत बेहद मशहूर हो गया। रेडियो पर श्रोताओं के ढेरों पत्र गायिका का नाम जानने के लिये पहुँचने लगे। फलस्वरूप एच.एम.व्ही को रेडियो पर जानकारी प्रसारित करनी पड़ी कि इस गीत की गायिका का नाम “लता मंगेशकर ” है। इस तरह लता मंगेशकर इस गाने से स्टार बन गई।
बॉम्बे टाकीज़ द्वारा निर्मित फिल्म “महल “कमाल अमरोही के लिए भी “मील का पत्थर” साबित हुई ।जहाँ तक पुनर्जन्म का हिंदी फ़िल्मों से संबंध है, तो इस राह पर भी हमारे फ़िल्मकार “महल” के बाद चले पड़े। जन्म मरण,आत्मा परमात्मा जैसे रहस्यपूर्ण विषय अब हमारे फिल्मकारों की गहरी आस्था बन गए और जिस पर हमारा हिंदी सिनेमा आज तक चल रहा है। ‘महल’ के बाद में आयी फ़िल्म मधुमती (1958),मिलन (1967),नीलकमल, (1968 ), क़र्ज़ (1980 ) ,कुदरत (1981 ), बीस साल बाद (1962), मेरा साया (1966), अनीता (1967) आदि आदि कुछ रहस्य प्रधान फिल्मे थी जिनमे रोमांच पैदा करने के लिए “पुनर्जन्म” का आंशिक तड़का लगाया गया था । भूल भुलैया (2007) की कहानी महल से ही प्रभावित थी ,जिसे पर्सनैलिटी डिसॉर्डर जैसे विषय के साथ जोड़कर परोसा गया था।
“महल” बनकर तैयार हुई और 13 अक्टूबर 1949 को रिलीज़ हुईं। बॉम्बे टॉकीज की पिछली कुछ मूवीज ने बॉक्सऑफिस पर कुछ ख़ास अच्छा नहीं किया था इसलिए कई ट्रेड पंडितों इस फ़िल्म के फ्लॉप की भविष्यवाणी की। हालाकि पहले और दूसरे हफ्ते में फ़िल्म स्लो रही । फिल्म ने तीसरे हफ़्ते में रफ्तार पकड़ी और जल्दी ही देशभर में चर्चा का केंद्र बन गई। लोग फ़िल्म को देखने के लिए सिनेमाघरों में टूट पड़े। एक थिएटर मालिक ने मीडिया से कहा, “मैं दोस्तों और जनता की इस फ़िल्म की टिकट्स की डिमांड से बहुत खुश हूं इस फ़िल्म के सारे शोज की टिकट्स एडवांस में ही बिक रही है। ये हमारी उम्मीदों से परे एक हिट फ़िल्म है और मुझे लगता है कि यह निश्चित रूप से सिल्वर जुबली हिट बन जायेंगी। लोग इसे बार-बार देखना चाह रहे हैं।”
इस फ़िल्म ने उस वक्त 1 करोड़ 40 लाख का कारोबार किया था और 1949 की “बरसात” और “अंदाज” के बाद तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म थी। “महल” उस दशक की दसवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म रही। ये बॉम्बे टॉकीज की सबसे बड़ी हिट फिल्म बनी। 
72 Years of Mahal

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