Wednesday, October 13, 2021

दादा मुनि 13 अक्टूबर जन्मविशेष

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भारतीय सिनेमा के स्वर्ण सफर को कौन भूल सकता है. दादामुनि, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर, दिलीप कुमार सरीखे लोगों ने सिनेमा को नए आयाम दिए हैं. आज अपने समय के सुपरहीरो अशोक कुमार की जयंती है जिन्हें लोग अक्सर दादामुनि के नाम से जानते हैं ।

हिन्दी फिल्मों के आंरभिक दौर के नायकों में अशोक कुमार एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने प्रचलित पारसी थिएटर के संस्कारों को ताक पर रखते हुए अपने सहज अभिनय के दम पर स्टारडम खड़ा किया और कभी अपने को किसी छवि से बंधने नहीं दिया. अपनी खास छवि के कारण वह लोगों के दिलों पर छा गए. अल्हड़ स्वभाव और कोई भी किरदार करने की क्षमता ने उन्हें असल मायनों में सुपरस्टार बना दिया था ।

बिहार के भागलपुर शहर के आदमपुर मोहल्ले में 13 अक्टूबर, 1911 को पैदा हुए दादामुनि सभी भाई-बहनों में बड़े थे. उनके पिता कुंजलाल गांगुली मध्य प्रदेश के खंडवा में वकील थे. गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे. दरअसल इन दोनों को फिल्मों में आने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से ही मिली. तीनों भाई “चलती का नाम गाड़ी” और “बढ़ती का नाम दाढ़ी” जैसी फिल्मों में एक साथ काम करके दर्शकों को खूब हंसा चुके हैं. आज भी “चलती का नाम गाड़ी” को बेहतरीन हास्य फिल्मों में गिना जाता है ।

अशोक कुमार ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज से पढ़ाई की थी. अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की. सिनेमा जगत में तमाम पुरस्कार जीत चुके और कई बेहतरीन फिल्में दे चुके अशोक कुमार सिनेमा जगत में बड़े बुझे दिल से आए थे ।

दरअसल अशोक कुमार की रूचि फिल्म के तकनीकी पक्ष में थी और वह इसी में सफलता हासिल करना चाहते थे. किसी काम को हाथ में लेने के बाद उसे पूरी तल्लीनता से करना अशोक कुमार की फितरत थी. इसी वजह से जब उन पर अभिनय की जिम्मेदारी आई तो उन्होंने इसे भी पूरी गंभीरता से लिया. वह अभिनय में इतनी जल्दी रच बस गए कि लगा मानों यह उनका जन्मजात पेशा था ।
              
1936 में बांबे टाकीज स्टूडियो की फिल्म जीवन नैया के हीरो अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी. ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नजर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने की पेशकश की. यहीं से उनके अभिनय का सफर शुरू हो गया. उनकी अगली फिल्म "अछूत कन्या" थी. 1937 में प्रदर्शित यह फिल्म अछूत समस्या पर आधारित थी और देविका रानी उनकी नायिका थीं. यह फिल्म कामयाब रही और उसने दादामुनि को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया ।

एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई “किस्मत” फिल्म से बनी. पर्दे पर सिगरेट का धुंआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फिल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया. यह जोखिम उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए. इसके बाद 1949 में मधुबाला के साथ आई “महल” भी काफी सफल साबित हुई ।

बाद के दिनों में जब हिंदी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फिल्में कामयाब होती रहीं ।

उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरू कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी कायम रही. ऐसी फिल्मों में कानून, चलती का नाम गाड़ी, विक्टोरिया नंबर 203, छोटी सी बात, शौकीन, मिली, खूबसूरत, बहू, बेगम, पाकीजा, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं ।

फिल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया. भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई. सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार हम लोग के एक अभिन्न अंग बन गए. दर्शक आखिर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतजार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे. उन्होंने बहादुरशाह जफर सीरियल में भी अविस्मरणीय भूमिका निभाई थी ।

अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फिल्म के बिना अधूरी ही रहेगी. इस फिल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया. इस फिल्म में उनका गाया गीता रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. काफी लोकप्रिय हुआ था. इस फिल्म के लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था ।

अशोक कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिसमें वर्ष 1962 में फिल्म “राखी” के लिए पहली बार और फिर 1963 की फिल्म “आशीर्वाद” शामिल हैं. साल 1966 में फिल्म “अफसाना” के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा गया. वे वर्ष 1988 में हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी सम्मानित किए गए. 1998 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया ।

लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले अशोक कुमार 10 दिसंबर, 2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए. आज भी दादा मुनि नए सितारों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं ।

उनकी चर्चित फिल्मों में पाकीजा, बहू बेगम, आरती, बंदिनी, आशीर्वाद, चलती का नाम गाड़ी आदि शामिल हैं ।
                              - सौजन्य से : गूगल 
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