Sunday, October 24, 2021

तू संगीत का सागर है, तेरी इक गीत के प्यासे हम

तू संगीत का सागर है, तेरी इक गीत के प्यासे हम ...

मन्ना डे का असली नाम 'प्रबोध चन्द्र डे' था। १ मई १९१९ को जन्मे मन्ना दा ने हिन्दी और बंगाली के अलावा गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, असमिया, भोजपुरी, अवधी, पंजाबी, मैथिली, कोंकणी, सिंधी और छत्तीसगढ़ी में पार्श्वगायन किया है। १९४२ में आई फ़िल्म ‘तमन्ना’ से उन्होंने अपने पार्श्वगायन का आग़ाज़ किया था। उन्होंने करीब चार हजार गीतों को स्वर दिया। पद्मश्री, पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के जैसे उच्चतम सम्मान पा चुके मन्ना दा किसी गाथा से कम नहीं।

आज उनकी पुण्यतिथि (२४ अक्टूबर २०१३) पर उन्हें याद करते हुए उनका एक इंटरव्यू जो २००३ में 'लिटिल इंडिया डॉट कॉम' द्वारा लिया गया था। उसका हिंदी अनुवाद साभार आप सब के लिए ~

● बड़े होने और संगीत की आपकी शुरुआती स्मृतियाँ कैसी हैं?

~ अपने शुरुआती दिनों में अपने विख्यात चाचा के.सी. डे से संगीत मुझे विरासत में मिला। लेकिन मेरी १३ वर्ष की आयु में वे अपनी दृष्टि गँवा बैठे और अपने जीवनयापन के लिए संगीत का सहारा लेने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचा। परिवार में किसी और का रुझान संगीत की तरफ नहीं था। उन्होंने अपना सारा अर्जित ज्ञान मुझे और मेरे स्वर्गीय भाई को दिया। इसके अलावा अलाउद्दीन खान साहब, स्वर्गीय विलायत खान के पिता इनायत खान जैसे और कई संगीतकार हमारे चाचा के समकालीन थे और हमारे घर आते रहते थे। जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।

● हालांकि आप के पास भी क्लासिकल संगीत की अथाह रेंज है आप ख़ुद सुगम संगीत को ज़्यादा पसंद करते हैं।

~ एक मज़बूत बुनियाद के लिए क्लासिकल की ट्रेनिंग ज़रूरी है लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं शास्त्रीय गायन के लिए बना ही नहीं था। मेरी इस तथ्य में ज़्यादा रूचि नहीं कि आप बैठकर एक ही राग को दो-तीन घंटों तक गाते रहें। उसमें बहुत दोहराव होता है और श्रोताओं के धैर्य की खासी परीक्षा हो जाती है। के. सी. डे मेरे जीवन पर प्रभाव डालने वाले पहले व्यक्ति थे और बिलकुल शुरुआत से मेरी गायन शैली उन्हीं के गायन पर ढली है। ऐसा लगता है कि चीज़ों को समझ लेने की मेरी क्षमता भी ठीक ठाक थी और उनके बजाए पीसेज को मैं टेबल पर जस का तस दोहरा सकता था और वैसे ही ग़ा भी लेता था। मेरे चाचा अपने दोस्तों को लेकर बड़े सतर्क रहते थे और चाहते थे कि मैं भी वैसा ही बनूँ। वे नहीं चाहते थे कि मैं रुचिहीन लोगों के साथ उठूं-बैठूं। अच्छा प्रभाव और सम्पूर्ण मित्रताएं बहुत ज़रूरी होती थीं और मैं आज तक इस बात का अनुसरण करता हूँ।

● आपने कलकत्ता छोड़ा और गायन के क्षेत्र में हाथ  आजमाने बंबई चले गए। कैसी रही वह यात्रा?

~ कलकत्ते का संगीत मुझे परेशान करने लगा था। वहां रविंद्र संगीत के अलावा कुछ था ही नहीं सो मैंने बंबई जाने का फ़ैसला किया अलबत्ता मुझे नहीं पता था कि यह सब इतना मुश्किल होगा। पहली बात तो यह थी कि बंगाली होने के नाते मैं एक बाहरी आदमी था और मुझे इस तरह के कमेंट्स सुनने को मिलते थे कि अरे बंगाली बाबू वापस बंगाल जाओ, अपने रसगुल्ले खाओ और वहीं रहो। मैं अपने चाचा के साथ गया था सो चीज़ें उतनी दुश्वार नहीं थीं। मैंने पांच साल तक उनके असिस्टेंट का काम किया और उस ज़माने के हिसाब से मुझे ५०० रूपये का अच्छा खासा वेतन मिलता था।

२२-२३ की आयु में मुझे अपना पहला ब्रेक मिला जब मैंने फ़िल्म ‘रामराज्य’ के लिए “ऊपर गगन विशाल” गाया और तुरंत मुझ पर एक धार्मिक गायक का ठप्पा लगा दिया गया। फिर जाने माने फ़िल्म मेकर बिमल रॉय के लिए मैंने “चली राधे रानी अंखियों में पानी” गाया। वह बड़ा हिट हुआ और बिमल रॉय ने पूछा “मन्ना तुमने स्क्रीन पर वह गाना देखा है?” जब मैंने न में जवाब दिया तो वे बोले कि मुझे उसे देखना चाहिए कि उसे देखकर दर्शक किस कदर प्रभावित हो रहे हैं। सो मैंने वैसा ही किया और क्या देखा कि एक कोई बूढा दढ़ियल आदमी उस गीत को ग़ा रहा था। मैं तो ग़ुस्से में पगला ही गया। मैं दोहरी मनः स्थिति में था कि वापस कलकत्ता चला जाऊं या वहीं रहकर संघर्ष करता रहूँ।

● क्या यह सच है कि उन दिनों एक तरह का गिरोह जैसा काम करता था कि संगीत निर्देशक ख़ास गायकों को ही लेते थे और बाकी लोगों को मौका नहीं मिल पाता था?

~ मुझे गिरोहों के बारे में कुछ नहीं मालूम पर स्ट्रगल करने में मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती। मेरे ख़याल से हम सब का अपना-अपना कोटा होता है और ऐसा नहीं है कि संगीत निर्देशकों ने जितना सब कम्पोज़ किया उसे मैंने ही गाया या किसी एक ने। हाँ सबके अपने अपने पसंदीदा गायक होते ही थे। उसे मैं ‘पार्ट ऑफ़ द गेम’ ही मानता हूँ।

● आपने इतने सारे महान संगीत निर्देशकों के साथ गाया है। क्या आप हमारे साथ कुछ यादें साझा करना चाहेंगे?

~ हां, मैंने सभी के लिए गाया। एस. डी. बर्मन अपनी तरह के अकेले थे। मैं उन्हें बचपन से जानता था क्योंकि वे भी मेरे चाचा से संगीत सीखते थे। मैं बर्मन दा से सदा आकर्षित रहता था। मुझे उनकी नाक से गाने की शैली पसंद आती थी और कॉलेज के दिनों में मैं उन्हीं की गाने की शैली की नक़ल किया करता। उनके गाने की शैली टिपिकल पूर्वी बंगाल की थी और उन्होंने हिन्दी गानों में भी उस शैली को नहीं छोड़ा। उनकी आवाज़ बिलकुल अलहदा थी और वे एक ट्रेंडसेटर बने। “वहां कौन है तेरा” को जिस तरह बर्मन दा ने गाया वैसा कोई नहीं गा सकता। वे मुझ से बहुत प्यार करते थे और हम अक्सर साथ साथ टेनिस खेलते थे। वे अक्सर कहते थे कि अगर कोई अपने दिल से किसी गाने को कम्पोज़ करे तो उन कम्पोजीशंस में आत्मा डालने का काम लता मंगेशकर और मन्ना डे ही कर सकते हैं। उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की बात हमेशा मेरे मन में रहती थी। एक बार उन्होंने ज़िक्र किया था कि मेरे गाए जिन दो गीतों ने उन्हें हिलाकर रख दिया था वो गीत थे “पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई” और ‘काबुलीवाला’ का “ऐ मेरे प्यारे वतन”। इस गाने को सुनने के बाद सलिल चौधरी भी रोने लगे थे।

सलिल मेरे व्यक्तिगत दोस्त थे। वे न सिर्फ़ एक म्यूजिकल जीनियस थे, उनके लिखे गीतों की तब भी बहुत मांग रहती थी और इतने सालों बाद अब भी, हालांकि उन्हें गुज़रे ज़माना बीत चुका। वे सच्चे अर्थों में एक इंटेलेक्चुअल थे। शंकर जयकिशन ने मुझे गाने के लिए शानदार गीत दिए। मैं शंकर के ज़्यादा नज़दीक था और वे सच्चे अर्थों में मेरी आवाज़ के प्रशंसक थे और बीस सालों तक इस जोड़ी ने मुझे ऐसे गाने दिए जो सालों साल सदाबहार बने रहेंगे। मुझे याद है जब भारत भूषण एक स्टार बन चुके थे मोहम्मद रफ़ी उनके सारे गाने गाया करते थे। शंकर ने ‘बैजू बावरा’ के लिए एक सुन्दर गाना रचा जिसे भारत भूषण के भाई शशि भूषण प्रोड्यूस कर रहे थे। जब शशि को पता चला कि गाना मैं गाने वाला हूँ तो उन्होंने इस बात का विरोध किया। वे चाहते थे कि गाना रफ़ी से गवाया जाए। शंकर ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि या तो गाना मन्ना डे गाएगा या वे कोई दूसरा संगीत निर्देशक खोज लें। मेरे “सुर ना सजे” गाने की यह कहानी है, और कहना न होगा गाना ज़बरदस्त हिट हुआ। बाद में जब शशि भूषण ने गाना सुना तो अभिभूत होकर मुझे गले से लगा लिया और बोले कि गाने को मुझ से बेहतर कोई नहीं ग़ा सकता था।

● शंकर ने ही आपको शास्त्रीय गायन के पुरोधा भीमसेन जोशी के साथ “केतकी गुलाब जूही” जैसा डूएट गाने का अवसर दिया था। कितना मुश्किल था वह?

~ भगवान जानता है कितना मुश्किल था। शंकर ने कहा कि मन्ना कमर कस लो अगली कम्पोज़ीशन तुम्हारे जीवन की यादगार  कम्पोज़ीशन बनने वाली है। तुम्हें किसी के साथ एक क्लासिकल डुएट गाना है। किसके साथ गाना है यह नहीं बताया गया। मैंने कहा ठीक है और रियाज़ शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद मुझे बताया गया कि धुन बन चुकी है और मुझे तुरंत स्टूडियो पहुंचना है। वहां जा कर पता लगा कि पंडित भीमसेन जोशी के साथ गाना है। डुएट को नायक और उसके प्रतिद्वंद्वी पर फ़िल्माया जाना था। मुझे नायक के लिए गाना था जिसकी जीत होनी थी। मुझे कंपकंपी छूट गयी और मैंने कहा कि मैं उनके साथ गा कर जीत नहीं सकता। सो मैं घर चला गया और अपनी पत्नी से कहा कि हमें कुछ दिन के लिए कहीं चले जाना चाहिए और तब तक नहीं लौटना चाहिए जब तक कि शंकर जयकिशन किसी और से उस गाने को गवा न लें। मेरी पत्नी ने मुझे हौसला दिया और कहा ऐसी बात तुम सोच भी कैसे सकते हो? और इसके अलावा तुम नायक के लिए गा रहे हो और तुमने उसे जिताना है। गाना बहुत मुश्किल था पर मैंने अपना सारा कुछ उसमें झोंक दिया और बाद में भीमसेन जोशी जी ने मुझसे कहा कि मन्ना साहब आप वाकई बहुत अच्छा गाते हैं। आप क्लासिकल गाना शुरू क्यों नहीं करते? मैं ने उनसे कहा कि मैं उनकी प्रेरक उपस्थिति के कारण शायद वैसा गा सका। बस इस से आगे नहीं! 

अनिल बिस्वास भी मेरे लिए उम्दा कम्पोजीशंस लाए पर असल चुनौती मुझे रोशन से मिली। अगर आप “न तो कारवाँ की तलाश है” सुनेंगे तो शायद समझ सकेंगे मैं क्या कहने की कोशिश कर रहा हूँ। रोशन ने मुझे सावधान करते हुए कहा कि देखो मन्ना, रफ़ी नायक के लिए गा रहे हैं लेकिन तुम उस्ताद के लिए, फर्क नज़र आना चाहिए। जब मैंने आलाप लिया तो ख़ुद रोशन भी भौंचक्के रह गए। बोले तुमने ख़ुद को साबित कर दिखाया है।

ज़्यादातर संगीत निर्देशक तो मुझे कम्प्रोमाइज कर लेने देते थे पर नौशाद साहब बिल्कुल नहीं। या तो उनके बताए तरीके से गाइए या गाइए ही मत! सी. रामचंद्र बहुत नियमबद्ध थे लेकिन उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। उन्होंने मुझे बतलाया कि डिक्शन और उच्चारण कितने महत्वपूर्ण होते हैं। वे किसी भी शब्द को ग़लत उच्चारित होते बर्दाश्त नहीं करते थे। वैसे भी मैं उच्चारण को लेकर बहुत सावधान रहता हूँ और इस बात को आप मेरे क्षेत्रीय गीतों में भी देख सकते हैं लेकिन इस मामले में सी. रामचंद्रन सबसे ज़्यादा मशक्कत करते थे। अनिल बिस्वास ने यह भी कहा था कि आप इकलौते गायक थे जो हर गाने की नोटेशन लेते थे और एक ही टेक में गा भी देते थे और यह भी कि जिन गानों को रफ़ी, किशोर, मुकेश या तलत महमूद ने गाया उन्हें आप भी गा सकते थे लेकिन आपके गाए गानों को लेकर इन गायकों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह उनका बड़प्पन है। वे मुझे काफ़ी पसंद करते थे, लेकिन मैं नहीं मानता कि रफ़ी साहब को कोई छू भी सकता है।

● हमें रफ़ी साहब के बारे में बताइये। बहुत कम लोग जानते हैं कि आपने रफ़ी को एक कोरस से छांट कर बाहर निकाला था और पहला ब्रेक दिलवाया था।

~ रफ़ी मुझसे जूनियर थे और जब मैं लीड सिंगर की जगह गा रहा होता था, कई बार वे कोरस में गाया करते थे। लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि उनके भीतर कितना दुर्लभ टेलेंट हैं और यह भी कि किसी भी क्षेत्र में वे अद्वितीय रहेंगे, खासतौर पर फिल्मों की प्लेबैक सिंगिंग में। मेरे मामले में कुछेक गाने अपनी तरह के अलग हैं पर रफ़ी साहब की जहां तक बात है उन्होंने जो कुछ गाया वह अविश्वसनीय था। सच तो यह है कि कई बार मेरे चाचा के. सी. डे कोई धुन बना रहे होते और मैं उन्हें असिस्ट किया करता। एक बार वे ‘जस्टिस’ नाम की फ़िल्म के लिए गाना कम्पोज़ कर रहे थे और मैं उनकी मदद कर रहा था। जब धुन बन गयी उन्होंने कहा कि रफ़ी को बता दो। मैंने कहा क्या बता दो। वे बोले यही कि धुन बन गयी है और उसे गाना गाना है। मैं काफ़ी आहत हुआ और मैंने पूछा क्यों? क्या मैं इसे नहीं गा सकता? चाचा बोले न तुम नहीं गा सकोगे। इसे बस रफ़ी ही गा सकता है। मैंने घमंड पी लिया और रफ़ी को बुलवा लाया। जब रेकॉर्डिंग ख़त्म हुई तो मुझे अहसास हुआ कि वाकई जिस तरह रफ़ी ने उस गीत को गाया वैसा मुझसे नहीं हो सकता था।

● आपको किसके साथ गाने में ज़्यादा मज़ा आया? लता के साथ या आशा के?

~ मैंने जितने डुएट लता के साथ गाये हैं उतने किसी और के साथ नहीं गाए। मुझे लता सबसे पहले अनिल बिस्वास की एक रिहर्सल में मिली थीं। मैंने अटपटे कपडे पहने एक सांवली सी लड़की को वहां स्टूडियो में बैठे देखा। जब मेरी रिहर्सल ख़त्म हुई अनिल ने कहा मन्ना ये ह्रदयनाथ मंगेशकर की बेटी हैं। तुमने इसका गाना सुना है? उसके पिता गुज़र गए थे और उनका वक़्त खराब चल रहा था। मैं उसे सुनने को वहां बैठ गया और उसके गाना शुरू करते ही मेरी समझ में आ गया कि मेरे सामने एक असाधारण प्रतिभा गा रही है।

दोनों ही बहनें अतुलनीय हैं लेकिन आशा बहुत वर्सेटाइल है और उसके साथ गाने का मतलब होता था इम्प्रोम्पटू इम्प्रोवाइज़ेशन करते जाना और एक दूसरे को चुनौती देते हम ऊपर नीचे आगे पीछे होते रहते थे। इसमें बड़ा मजा आता था। लोग कहते हैं कि ये दो बहनें इंडस्ट्री में किसी और को घुसने नहीं देतीं। मैं कहता हूँ कि अगर यह सच भी है तो प्रतिभा और मेहनत के मामले में इन बहनों की बराबरी कौन कर सकता था?

● ऐसा कौन सा गाना है जिसे सुनकर आप अपने आप से कहते हैं कि यह एक विस्मयकारी कम्पोजीशन है और आप उसके साथ न्याय कर पाने में सफल रहे?

~ मनोज कुमार की फ़िल्म ‘उपकार’ का ‘कसमें वादे प्यार वफ़ा’। इसे प्राण पर फिल्माया गया था जो फिल्मों में अक्सर विलेन की भूमिका किया करते थे। यह एक अलग क़िस्म का रोल था जिसने उनके एक्टिंग करियर को पूरी तरह बदल डाला था। उन्होंने मुझे फ़ोन कर कहा कि मन्नाजी मुझे ख़ुद पर एक गाना फिल्माए जाने का पहली बार मौका मिल रहा है। मनोज आपको मेरी भूमिका समझा देंगे। आप कृपा करके गाने को इतना मुश्किल मत गा देना कि स्क्रीन पर उसे दोहरा पाना मेरे लिए आसान न रह जाए। सुबह मनोज और मैंने गाने की रिहर्सल शुरू की। मनोज जी गानों के प्रति बेहद समर्पित शख़्स थे।

● राज कपूर के बारे में क्या ख़याल है? हालांकि अपने अधिकाँश गानों के लिए उन्होंने मुकेश की आवाज़ का इस्तेमाल किया, उनके कुछ यादगार गाने आपने गाए।

~ उनके क़द के फिल्मकारों के साथ काम कर सकना मेरे लिए बड़े फ़ख्र की बात रही। राजकपूर के साथ रेकॉर्ड किया गया हर गाना अपने आप में अविस्मरणीय होता था। उसे श्रेष्ठतम बनाने में वे किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतते थे। अक्सर वे एक ढोलक लेकर बैठ जाया करते और कहते चलो मज़े करते हैं। “प्यार हुआ इकरार हुआ” के लिए हम पूरे ओर्केस्ट्रा के साथ रेकॉर्डिंग कर रहे थे और राज जी के आने का इंतज़ार था। वे बहुत लेट थे और तब पहुंचे जब हम पैक अप करने ही वाले थे। वे इतने विनम्र थे कि पैर छू कर लोगों से माफ़ी मांगने लगे, तब चाय का एक दौर चला और हम सब फिर से साथ बैठे। जब हम गा रहे थे राज ने थोड़ी स्पेस दिए जाने का अनुरोध किया और एक छाता माँगा। इस तरह सीन कम्पोज़ हुआ। सुबह से शुरू कर के हम रात के दस बजे तक रिहर्सल करते रहे क्योंकि हम उसमें इस कदर डूबे हुए थे। मुझे याद है जब मैंने ‘मेरा नाम जोकर’ के लिए “ऐ भाई ज़रा देख के चलो” गाया था और जिसके लिए मुझे फिल्मफेयर अवार्ड मिला, मैं किसी प्रोग्राम के सिलसिले में बाहर था और करीब एक बजे रात लौटा। जैसे ही हमने रिहर्सल शुरू की राज ने, जिनके कान मधुर संगीत को इस कदर पहचानते थे, महसूस किया कि हमें एक वायोलिनिस्ट की ज़रुरत है। पांच वायोलिनिस्ट खोजे गए, और उन्हें ट्रेंड किया गया और हमने रेकॉर्डिंग शुरू की। फ़िल्म बनाने में उन दिनों इस तरह का समर्पण देखने को मिलता था।

● महमूद जी के लिए आपने कुछ विस्मयकारी गाने गाए थे जैसे किशोर के साथ “एक चतुर नार” और “फुल गेंदवा ना मारो”. महमूद एक तरह के अभिनेता बन गए थे, जब फ़िल्में उन्हें केंद्र में रख कर लिखी जाती थीं। उनके साथ गाने का अनुभव कैसा रहा?

~ बेहद शानदार। महमूद मेरे साथ बैठते थे और नोट्स लेते जाते थे और पूछते रहते थे कि मैं कैसे गाता हूँ वगैरह। मुझे गाता हुआ देखकर वे अपनी भंगिमाओं में मेरी आवाज़ की सारी गतियाँ और भावनाएं ले आया करते थे। वे बेहद दयालु और मजेदार इंसान थे।

● लोग आपकी बांग्ला कम्पोज़ीशन्स के बारे में हैरत करते नहीं थकते।

~ मैंने बांग्ला में कोई २५०० गाने गाए हैं और उनमें से करीब ९५% का संगीत भी कम्पोज़ किया है। आप यक़ीन नहीं करेंगे कि पूर्वी बंगाल यानी वर्तमान बंगलादेश के हर घर में मेरी ये रचनाएं मिला करती हैं। वहां जब भी मैं गाता हूँ लोगों को मेरे सारे गाने याद होते हैं। अगर मैं बोल भूल जाता हूँ तो श्रोता उन्हें पूरा करते हैं। मेरा मन कृतज्ञता से भर उठता है। यह मेरी खुशनसीबी है कि इतनी बड़ी तादाद में लोग अब भी मेरे गीतों को प्यार करते हैं। हाल ही में मैंने न्यूयॉर्क में ५००० लोगों के सामने गाया। वह किसी तरह का कोई उत्सव वगैरह था। मैंने आयोजकों से पूछा कि आप मुझसे यहाँ गवाना चाहते हैं जहां लोग शापिंग और खाने में व्यस्त हैं तो वे बोले कि आप को अपने गाने की ताक़त का अन्दाज़ा नहीं है। आप बस शुरू करिए। मैंने गाना शुरू किया और सारे लोग सारे काम छोड़ कर ख़ामोशी से गाना सुनने लगे।

● क्या आपको इस बात से आश्चर्य होता है कि हमारे पास आज भी मन्ना डे का कोई क्लोन नहीं है जबकि कई लोगों ने रफ़ी और किशोर की आवाज़ की नक़ल कर ली है?

~ देखिये, इसमें मेरी कोई गलती नहीं! आवाज़ तो खुदा की देन होती है, और उसे सुधारने के लिए मैंने मेहनत भर की है। मैं आपको बताना चाहूँगा कि हाल ही में मैंने एक मराठी युवा को अपने खासे मुश्किल गानों को गाते सुना  कि मैं दंग रह गया। “लागा चुनरी में दाग” तो उसने इतनी ख़ूबसूरती से गाया कि मैं भी हक्का बक्का बैठा रह गया। मैं समझता हूँ मेरी आवाज़ और मेरी ख़ास शैली ने मुझे अपने लिए एक जगह बना पाने में मदद की और आमतौर पर उसकी नक़ल करना मुश्किल होता होगा।

● आज के संगीत के बारे में आप क्या सोचते हैं? और आपने फिल्मों में गाना बंद क्यों कर दिया है?

~ क्या आज आप एक भी ऐसे कम्पोज़र की तरफ इशारा करके कह सकते हैं कि वह मेरे ज़माने के संगीतकारों के कैलिबर का है या जानता है कि वह कर क्या रहा है? संगीत के क्षेत्र में जो भी हो रहा है वह बेहद अस्वास्थ्यकर है। म्यूजिक वीडियोज़ का कमाल है कि जो चाहे गायक बन सकता है सो यह तो अच्छी बात हुई है चाहे आपको गाना न भी आता हो आप गा सकते हैं। हर कोई गा रहा है। जब “मैं तो सीटी बजा रहा था, भेलपूरी खा रहा था, तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं” जैसे गाने बनने लगें तो आप क्या उम्मीद रख सकते हैं? यहाँ तक कि क्षेत्रीय संगीत भी बॉलीवुड संगीत का क्लोन बनता जा रहा है। मैं समझता हूँ कि आमिर खान और यश चोपड़ा के अलावा मुझे कोई भी ऐसी फ़िल्में बनाता नज़र नहीं आ रहा जिनके लिए अच्छे संगीत की ज़रुरत हो। गायकों के तौर पर मुझे सोनू निगम, अलका याग्निक और सुनिधि चौहान अच्छे लगते हैं लेकिन उन्हें वैसा संगीत नहीं मिल रहा जो उनकी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल कर सके।

मैं अब भी गाता हूँ और चुनिन्दा शोज़ करता हूँ। मेरा स्वास्थ्य ठीक है, मेरी दोनों बेटियाँ शानदार गायिकाएं हैं और उन्होंने इंडस्ट्री में न जाने का रास्ता चुना। उन्होंने लता और आशा के बीच का गलाकाट संघर्ष देखा और वह उन्हें भाया नहीं। दोनों प्रोफेशनल्स हैं। दरअसल मेरी बड़ी बेटी कैलिफोर्निया के सन माइक्रोसिस्टम्स में काम करती है। मेरी पत्नी बहुत अच्छी हैं जिसे मैं ख़ूब प्यार करता हूँ और एक अनुशासित जीवन जीता हूँ। सबसे बड़ी बात मेरे लिए यह है कि इतने सारे लोग उस संगीत को पसंद करते हैं जिस पर मेरा विश्वास रहा और वे मेरे गीत सुनने को आते हैं. मेरे लिए इतना बहुत है।

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