Tuesday, November 16, 2021

चित्रगुप्त 14 फरवरी d 16 नवम्बर b

महान संगीतकार चित्रगुप्त जी को उनकी जयंती पर याद करते हुए विनम्र स्मरणांजलि।

चित्रगुप्त के संगीत की मधुरता दिग्गज संगीतकारों से कम नहीं थी। फिर भी हिंदी फिल्म उद्योग में वे ताउम्र हाशिये पर रहे। चित्रगुप्त जी जिनका पूरा नाम चित्रगुप्त श्रीवास्तव था। इनका जन्म १६ नवंबर १९१७ को बिहार के सारन जिले (गोपालगंज) के सावरेजी गाँव में हुआ था। और १४ जनवरी १९९१ को इनका निधन हुआ था।

जब भी हिंदी फ़िल्म संगीत की बात होती है तो ५० से ६५ के दशक तक रचे गए संगीत के माधुर्य का जिक्र जरूर होता है पर चित्रगुप्त जी के हिस्से में ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड की ही फ़िल्में आईं पर उनमें दिया हुआ संगीत किसी भी लिहाज़ से दिग्गजों के संगीत से कम नहीं था।

पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया था और लखनऊ के बेहद प्रतिष्ठित भातखंडे कॉलेज से संगीत की शिक्षा ली थी। संगीतकार बनने से पहले चित्रगुप्त पटना में लेक्चरर भी रहे। १९४५ में वे मुंबई चले आए,पहला मौका उन्हें फ़िल्म ‘रॉबिनहुड’(१९४६) में मिला।

वह स्टंट फ़िल्मों का दौर था. अपने शुरुआती फ़िल्मी करियर में चित्रगुप्त स्टंट फ़िल्मों के साथ भक्ति फ़िल्मों में संगीत देने के लिए प्रसिद्ध हुए। मिसाल के तौर पर फ़िल्म ‘तुलसीदास’ (१९५४) का भजननुमा गीत ‘मुझे अपनी शरण में ले लो राम’ कहा जा सकता है। इसे लिखा था हिंदी साहित्य की बड़ी मशहूर हस्ती गोपाल सिंह नेपाली ने, इन दोनों की जुगल जोड़ी ने कई शानदार गाने बनाए।

इसके बाद चित्रगुप्त को लता जी का साथ मिला। यहां से उनकी क़िस्मत बदली और एक के बाद एक सफल और मधुर गीत दोनों के हिस्से में जुड़ते चले गए। फ़िल्म ‘भाभी’ के सारे गीत यादगार बन पड़े हैं। ‘चल उड़ जा रे पंछी’ (राग पहाड़ी) या ‘चली चली रे पतंग’ (भैरवी) या ‘छुपा कर मेरी आंखों को वो पूछें कौन हैं जी हम’ गीत तो बेहद मधुर गीत हैं। फ़िल्म ‘आकाशदीप’(१९६५) का ‘दिल का दिया जला के गया ये कौन मेरी तन्हाई में’ तो निश्चित तौर लता मंगेशकर के सबसे मधुरतम गीतों में से कहा जाता है। इस गीत की ख़ास बात यह है कि लताजी ने इसे बेहद हौले से गाया है।

फ़िल्म ‘वासना’ (१९६८) का गीत ‘ये पर्वतों के दायरे, ये शाम का धुंआ’। इस फ़िल्म में उन्हें साहिर लुधायनवी का साथ मिला। मोहम्मद रफ़ी और मुकेश चित्रगुप्त के प्रमुख पुरुष गायक रहे। रफ़ी साहब ने उनके संगीत निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘ऊंचे लोग’ (१९६५) में एक गीत ‘जाग दिले दीवाना, रुत जागी वस्ल-ये यार की’ गाया था। इस गीत में ऐसा लगता है मानो चित्रगुप्त ने उन्हें आवाज़ दबाकर, कुछ नाक का पुट और लफ़्ज़ों को हौले-हौले से लुढ़काने को कहा होगा। बहुत कम लोग जानते होंगे कि ‘भाभी’ का मशहूर गीत ‘चल उड़ जा रे पंछी’ पहले तलत महमूद से गवाया गया था, गाना आया तो इसमें मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ सुनाई दी। मोहम्मद रफ़ी ने चित्रगुप्त के संगीत से सजी फ़िल्म, ‘तूफ़ान में प्यार कहां’ में एक गीत गया था, ‘इतनी बड़ी दुनिया, जहां इतना बड़ा मेला’ ज़बरदस्त दार्शनिक अंदाज़ में गया। चित्रगुप्त जी ने कुछ प्रयोग किशोर दा की आवाज़ से साथ भी किए। उन्होंने ‘एक राज़’ (१९६३) में किशोर दा से क्लासिकल गीत गवाए ,  ‘अगर सुन ले तो एक नगमा हुज़ूरे यार लाया हूं’, ‘गंगा की लहरें’ (१९६४) में ‘मचलती हुई हवा में छम-छम’ और छेड़ों न मेरी ज़ुल्फें’ बड़े उत्कृष्ट गीत बन पड़े हैं।

यह वह दौर था जब चित्रगुप्त बड़े व्यस्त संगीतकार हो गए थे। उस दौर में भी एस डी बर्मन के कहने पर उन्होंने एक फ़िल्म में भक्ति संगीत दिया था। मध्यवर्गीय समाज की हलचल और उसके तौर-तरीक़ों वाली ज़िंदगी के इर्द-गिर्द बुनी फ़िल्मों का संगीत चित्रगुप्त का सिग्नेचर स्टाइल था। मैन्डोलिन का जितना प्रभाव उनके संगीत में मिलता है, उतना किसी और के संगीत में नहीं। बहुत कम लोगों को पता होगा कि #पूर्व_प्रधानमंत्री_स्वर्गीय_लाल_बहादुर_शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी के दो गीतों को उन्होंने संगीत से रचा था। चूंकि वे पूर्वांचल की पृष्ठ भूमि से आते थे। लिहाज़ा, हिंदी फ़िल्मों के साथ-साथ चित्रगुप्त ने भोजपुरी फ़िल्मों में भी अच्छा संगीत दिया।

उनके संगीत में इतनी मधुरता के बावजूद उन्हें बड़े बैनर की फ़िल्में नहीं मिलीं। यह ज़िंदगी और इसकी दास्तां बेहद अजीब है, कभी इस क़दर उलझी नज़र आती है कि हुनरमंद व्यक्ति को यथोचित मुक़ाम नहीं मिलता, और कभी इतनी सुलझी कि दो कदम चले और मंजिल नज़र आ गई। इत्तेफाक देखिए कि उनके बेटों की जोड़ी आनंद-मिलिंद ने ‘क़यामत से क़यामत तक’ में संगीत देकर दुनिया में तहलका मचा दिया, पिता की साधना सफल हो गई थी। उनके पुत्रों ने कई फ़िल्मों में यादगार संगीत दिया है। जीवन के अंतिम वर्षों में चित्रगुप्त तुलसीदास की चौपाइयां ज़रूर दोहराते होंगे, ‘प्रभु की कृपा भयउ सब काजू, जनम हमार सुफल भा आजू’

स्त्रोत : गूगल

No comments:

Post a Comment