Monday, November 1, 2021

संत कंवरराम 1 नवम्बर

*भगत कँवर राम जो लोक गायक भी थे,समाज सुधारक भी*
  संत कंवरराम जी ने भगत कला के माध्यम से अलग पहचान बनाई थी।अपनी रात भर चलने वाली प्रस्तुतियों से उन्होंने कला जगत में काफी  लोकप्रियता बना ली थी- भगत  नामक कथा गायन शैली है ही ऐसी चमत्कारिक कला ।यह कला सिंध में बहुत सराही गई थी।रेहड़की साहब,सिंध में सचो सतराम दरबार  आजादी के पूर्व समर्पित जीवन जिए संतों  को नमन करने भारत से आज भी हर साल हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।यह स्थान श्रद्धा का प्रतीक स्थल है।
 
स्वतंत्रता के सूर्य  का अभी उदय नहीं हुआ था।देश में स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था।अमृतसर के जलियांवाला बाग में 1919  में जनरल डायर द्वारा किए गए हत्याकांड से युवा उद्वेलित हो गए थे।तब पूरे देश के साथ सिंध में भी राष्ट्र भक्ति की भावना का ज्वार देखने को मिलता था।सक्खर के एक उत्साही नौजवान हेमू कालानी ने इस  घृणित और अमानवीय कांड का वृतांत सुनकर अंग्रेजों के विरुद्ध सीधी कार्रवाई का मन बना लिया था,जिसे बाद में उन्होंने अंजाम भी दिया।उस दौर में जहां बहुत से देश भक्त योद्धा अंग्रेजों से सीधे टक्कर ले रहे थे वहीं कला, संगीत,समाज सेवा से जुड़े अहम व्यक्ति और कला धर्मी भी अपने स्तर पर आजादी के लिए जन -जागरूकता बढ़ाने और लोगों को झकझोरने की मुहिम में लगे थे।ऐसे ही संत और समाज सुधारक थे, भगत कंवरराम जी।वर्ष 1939 में संत कंवर राम की सिंध में हत्या कर दी गयी थी । संत जी एक लोक गायक,जनप्रिय लोक सेवक,स्वतंत्रता  सेनानी ,समाज सुधारक और सादी जीवन शैली के हिमायती महापुरुष थे ।उन्हें आज भी हिन्द और सिंध में विशेष रूप से याद किया जाता है । इस मौके पर " भगत " के आयोजन होते हैं । यह लुप्त होता कथा गायन है। छत्तीसगढ़ की पंडवानी और कर्नाटक के यक्षगान की तरह यह कला लोकप्रिय रही है।संत जी खुद भी रात-रात भर  गाते और नृत्य करते थे।संत कंवरराम को सिंध का गाँधी भी कह सकते हैं। उन्होंने अंतिम साँस लेते समय -हरे राम ..कहा था।अमरावती के एस के पुनशी की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक बायोग्राफी ऑफ संत कंवरराम में  उनके व्यक्तित्व पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।अमरावती में संत जी के नाम से आश्रम भी स्थापित  है।सरकार  ने  कुछ साल पहले संत कंवरराम जी के जन्म के 125 वर्ष होने पर सम्मान  स्वरूप डाक   टिकिट जारी किया था। संत कँवर राम को भगत कँवर  राम के नाम से भी जाना जाता है।

 कुछ नगरों जैसे अजमेर,उल्हासनगर ,अहमदाबाद ,जयपुर और दिल्ली  इस कला के प्रमुख केंद्र हैं।   देश के प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र भोपाल में भी कुछ स्थानों पर यह लोक कथा गायन  हर साल होता है। इस गायन शैली में दो मुख्य गायक होते हैं। पैरों में घुंघरू ,वस्त्र के रूप में शेरजामा उपयोग में लाया जाता है। 

भारत सरकार की संगीत नाटक अकादमी को लुप्त हो रही इस भगत गायन और नृत्य शैली को बचाने मदद करना चाहिए। देश के बंटवारे के पहले सिंध के शहर-शहर  और गाँव -गाँव में भगत के दीवाने पाए जाते थे।आजकल  नयी पीढ़ी इस कला के प्रति उतना रुझान नहीं रखती लेकिन एक समय यह कला लोगों के सर चढ़कर बोलती थी .गीत संगीत और नृत्य के शौकीन आते ही थे ,आध्यात्मिक भावना रखने वाले भी कम नहीं आते थे। पूरी रात और अल सुबह  तक गायन चलता रहता था। देश विभाजन से इस कला को नुक्सान हुआ और इस समय भारत में बमुश्किल  10-20 भगत कलाकार बचे होंगे। समाज और सरकार दोनों की और से इस गायन कला को संरक्षण मिलना चाहिए।  संत कंवरराम जी के प्रति हम सभी की  यही  सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
* अशोक कुमार मनवानी,भोपाल

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