Tuesday, February 23, 2010

भारतीय रजतपट की पहली सुसंस्कृत तारिका --- देविका रानी
















फ्लैश बैक----- रवि के. गुरुबक्षाणी
स्मरण दिवस - 9 मार्च पर विशेष





----------ak -naam जो आज भी चम्पे की टटकी कली की खुशबु का और भोर के तारे की शंाति, स्निग्धता और शुचिता का अहसास कराता है, वह नाम देविका रानी का है.पुरुषप्रधान समाज में दादा फालके पुरस्कार पाने वाली देविका रानी की एक फिल्म देखकर सुप्रसिद्ध बर्मिंघम पोस्ट ने लिखा - इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि देविका रानी के अभिनय में ऐसा गीतात्मक लालित्य और सम्मोहन है, जिसने एक सीधी सादी पटकथा को अद्भुत सौंदर्य की वस्तु बना दिया . रजत पट पर आने वाली वह अब तक की सबसे सुंदर नारी है. इस प्रकार देविका रानी ने अपने कुशल अभिनय और बेमिसाल सौंदर्य से पूरे लंदन को चकित कर दिया. कर्म देखने के बाद सरोजनी नायडू ने भी उन्हें बहुत सराहा.
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दुनिया एक रंगमंच है और दुनिया वाले रंगकर्मी. इम दुनिया में आने वाला हर प्राणी यहाँ आकर अपनी अपनी भूमिका निभाता है. तदोपंरात इस दुनिया से कूच कर जाता है. फिल्मों में कुछ कलाकार अपनी विशिष्टता से हमेशा याद किए जाते हैं. देविका रानी एक ऐसी ही अदाकारा थीं.जब जब सौंदर्य व प्रतिभा के अनोखे संगम की बात चलेगी तो देविका रानी की ही बात चलेगी. सिनेमा संसार के ग्लैमरस और इंद्रधनुषी परिवेश में उन्हें कभी फस्र्ट लेडी कहा गया, कभी सबसे सुंदर अभिनेत्री कहा गया, तो कभी बेहिसाब अधिकार सम्पन्न अभिनेत्री का खिताब दिया गया. फालके पुरस्कार पाने वाली सर्वप्रथम हस्ती देविका रानी ही थीं.फिल्म अछूत कन्या से अशोककुमार के साथ हिट जोड़ी की परंपरा शुरु करने वाली नायिका देविका रानी ही थीं. दरअसल भारतीय सिनेमा में स्त्री द्वारा नायिका के अभिनय की शुरुआत देविका रानी के नाम से होती है.
बॉम्बे टाकीज से शुरुआत करते है. हिमांशु राय भले बॉम्बे टॉकीज के संस्थापक-सृजक और सर्वेसर्वा थे, कितुं 220 स्त्री-पुरुषों को रोजी-रोटी देनेवाली इस विशाल संस्था की जिम्मेदारी देविका रानी ही संभालती थी. 1928-29 में इंग्लैंड में हिमांशु और देविका रानी की पहली मुलाकात हुई थीं. 16 फरवरी 1964 को फिल्म निर्माण संस्था की स्थापना हुई जिसे बॉम्बे टॉकीज नाम दिया गया. इस संस्था में पढ़े लिखे लोगों को प्रवेश दिया जाता था. निर्देशक शशधर मुखर्जी, अमिय चक्रवर्ती, अशोक कुमार, दिलीप कुमार जैसे जाने माने लीजेंड इसी संस्था की देन है. किशोर कुमार ने भी यहीं से कैरियर की शुरुआत की थीं. इस स्टूडियों और संस्था ने अभिनेता-लेखक-निर्देशक किशोर शाह, कॉमेडियन महमूद के पिता और डांस डाइरेक्टर मुमताज अली, अभिनेत्री स्नेहलता प्रधान, चरित्र अभिनेता नाना पलसीकर, लेखक-पत्रकार-फिल्म निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास, गायिका-अभिनेत्री सुरैया, अमिय चक्रवर्ती तथा महान गीतकार प्रदीप कुमार जैसे नाम दिए हैं.
पाशात्य संस्कारों में पली बढ़ी देविका रानी ने ग्रामीण हरिजन युवती कस्तूरी की भूमिका फिल्म अछूत कन्या में निभा कर सबको हतप्रभ कर दिया था. अशोक कुमार ने इसी फिल्म में अपना पहला गीत गाया था - मैं बन के पंछी, बन के संग संग डोलू रे...इस फिल्म की लोकप्रियता देखकर पंडित नेहरु भी स्वयं को रोक नहीं पाए थे. देविका रानी के तमाम पत्रों में एक दिन उनका भी पत्र पंहुच गया. देविका रानी स्वाभाविक रुप से आश्चर्य में पड़ गई. सरोजिनी नायडू पहले ही देविका के अभिनय की कायल हो चुकी थीं. अछूत कन्या का किरदार उन्हें पहले ही द्रवित कर चुका था. दरअसल पंडित नेहरु को फिल्म देखने के लिए उन्होंने ही प्रेरित किया था. तब पं. नेहरु ने सरदार वल्लभ भाई पटेल और आचार्य नरेंद्र देव के साथ 25 अगस्त 19&6 को रॉक्सी सिनेमा में यह फिल्म देखी थीं. कैरियर के सुनहरे दौर में देविका रानी ने तकरीबन जिन 15 फिल्मों में काम किया वे हैं - कर्मा, जवानी की हवा, जीवन प्रभात, हमारी बात, अछूत कन्या, ममता, निर्मला, दुर्गा, सावित्री, और अंजना. जयराज के साथ हमारी बात उनका अंतिम फिल्म थीं. 19 मई 1940 के दिन हताश और नर्वस ब्रेक डाऊन का शिकार बने हिमांशु राय चल बसे. इसके बाद देविका रानी ने अभिनय की तिलांजलि दे दी. उनकी कई यादगार भूमिकाओं में अछूत कन्या की हरिजन बाला, ब"ो को तरसती नि:संतान स्त्री के रुप में निर्मला, अनाथ युवती के रुप में दुर्गा, क्रांतिकारी नारी सावित्री और अति उ"ाकुल की पर बदनसीब ब्राह्मण कन्या जीवन प्रभात का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. पति के अवसान के बाद देविका रानी ने बॉम्बे टाकीज का कार्यभार सम्भाल लिया. उसी दरम्यान संस्था ने बंधन, पुनर्मिलन, झाूला, वसंत और कलकत्ता बंबई में 150 सप्ताह चलने वाली धूम फिल्म किस्मत का निर्माण किया.
एक समय लाखों युवा दिलों पर राज करने वाली विश्व सुंदरी और स्वप्न सुंदरी देविका रानी को फाइव स्टार होटलों में रहना पड़ा था. हमेशा कैमरा और स्पॉट लाईट के बीच रहने वालों को तन्हाई 'यादा सताती है. ऐसा ही अंत इस प्रतिभाशाली युगसृजक और अद्वितीय तारिका का भी हुआ.

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