Wednesday, February 17, 2010

होली पर्व पर विशेष---हिन्दी फिल्मों में होली चित्रण-----------







आज ना छोड़ेंगे हम हमजोली , खेलेंगे हम होली......

होली इस एक शब्द में कितना जादू है. फिल्मों के सन्दर्भ में तो होली शब्द का मतलब मौजमस्ती से है. होली...आर.के. की यानि राजकपूर के आर. के. स्टूडियों की होली...बिग बी यानि अमिताब बच्चन के घर की होली...एक बड़े हौज में घुले हुए रंग में दो एक पटखनी से तर-बतर बदन पर अस्त-व्यस्त लिबास में चिपके चिपकाते लोग... शराब के जाम पर जाम, पुरे दिन सिर्फ इतना ही काम...रंग के बाद गुलाल. लाल लाल गालो पर पुती हुई लालिमा, ठहाकों के बीच दा¡तों की पंçक्तयां... सभी कुछ दिखावटी सा... दूसरी तरफ गांवों की होली..बसन्त के सन्देश में मस्त सभी. पलाश के खिलते ही तपने वाले दिल किसी बिरहन के मन की हूक से सिहर उठते हैं.. पीले सरसों के फूलों से उठने वाली भीनी भीनी खुशबु...आम के बौर से गाती हुई कोयलियां..और कोयल की कूहू कूहू पर कोई बिरहन गा उठती है-काहे कोयल शोर मचाए रे, मोहे अपना कोई याद आए रे...पर जवाब फिर कोयल की टेर में होता है.
फिल्मों में होली का मकसद ईमानदारी से कहा जाए तो नायिका से अंग-प्रदर्शन करवाना या फिर मार-धाड़ का बहाना तलाशना रहा है. बावजूद इसके कई अवसरों पर होली को प्रत्यक्ष रुप से दर्शनीय तरीके से फिल्माया गया है. होली और फागुन नाम से कई फिल्में भी बनीं है और सैकड़ों फिल्मों में होली के दृश्य भी फिल्माए गए हैं. मुझे याद आता है होली गीतों के ये बोल..होली आई रे कन्हाई.., होली आई रे, कान्हा बृज के रसिया..., रंग डारो रे रसिया, फागुन के दिन-आए रे, अपने ही रंग-रंग डारो श्याम मोरे...खेलो रंग हमारे संग,आज दिन रंग रंगीला आया..., तन रंग लो आज मन रंग लो....होली प्रेमी के लिए मौज मस्ती में झूमने के क्षण लाते हैं. होली आई रे कान्हा....यह गीत 1937 में प्रथम महिला संगीतकार सरस्वती देवी ने फिल्म जीवन प्रभात के लिए संगीतबद्ध किया था. उसी दौर में अनिल विश्वास ने अंगुलीमाल फिल्म में एक होली गीत - आई आई बसन्ती बेला, मगन मन झूम रहा...अलबेली नार,करके ऋृंगार,आंचल संवार,आई पीके द्वार...कहीं बाजे मृदंग कहीं बाजे रे जंग...डाला था. इस गीत को सुनते ही बरबस ही आदनी झूमने लगता है.
होली के गीतों वाली फिल्मों के नाम इस प्रकार है- जीवन संध्या (1937) अंगुलीमाल, पूजा, होली (1940) आन (19भ्2) लड़की (19भ्3) मदर-इण्डिया (19भ्7) जोगन (19भ्9) नवरंग (19भ्9) कोहिनूर (1960) फागुन (1960) रंगोली (1962) फूल और पत्थर (1966) पराया धन (1971) फागुन (1973) आपकी कसम (1973) शोले (197भ्) जिद (1976) आपबीती (1977) सिलसिला (1981) कामचोर (1981) धनवान ( 1982) होली(1987)आदि. इनमें से कई गीत आज भी मन मोह लेते है. लोकप्रिय गीतों में राग काफी पर आधारित पण्डित रविशंकर के संगीत निदेüशन में होली खेलत नन्दलाल,बृज में...बेहद मशहूर हुआ. संगीतकार ज्ञानदत्ता ने गीत गोविन्द में अपने ही रंग रंग डारो श्याम मोरे ...नामक गीत मधुर धुन में बनाया था. इसी दौर का जोगन फिल्म का गीत-रंग डारो रे रसिया (बुलो सी. रानी ) भी गुनगुनाया जाता है. 19भ्3 में बनीं एस.डी.बर्मन निदेüशित लड़की का गीत-बाट चलत नई चुनरी रंग डारी ठेठ राग काफी पर आधारित था. इसी पंरपरा को शंकर-जयकिशन, कल्याणजी आनन्दजी, चित्रगुप्त, एस.डी.-आर.डी बर्मन,शिव-हरि,एच.मंगेशकर,लक्ष्मी प्यारे जैसे संगीतकारों ने बनाए रखा. ह्दयनाथ मंगेशकर ने 1982 में आई धनवान फिल्म में होली गीत स्वरबद्ध किया--मारो मारो भर भर कर पिचकारी और फिल्म मशाल के लिए होली आई होली आई..गीत की धुन बनाई. इसी तरह शिव-हरि ने सिलसिला में सब कुछ होते हुए भी रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे..में धुनों के स्तर पर गरिमा बनाए रखी. भप्पी दा ने जमी फिल्म में होली गीत को मार-धाड़ का रंग दे दिया--जमी दिनों का बदला चुकाने आए है दीवाने दीवाने.... . इसके बाद के प्रयासों में फिल्म बागबान का होली गीत-- होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले...लोगों की जुबान पर चढ़ा था. इसके बाद तो लेट्स प्ले होली...यानि होली का भी इंग्लिशकरण हो गया.
फिल्म शोले के गीत होली के दिन दिल मिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं....के बिना होली गीतों की चर्चा अधूरी लगेगी. यह गीत विरह और मिलन के अलग अलग रंगों से मनोभावों के अनुरुप बखूबी फिल्माया गया था. धमेüन्द्र हेमा मालिनी अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी के बीच यह गीत यादगार बन पड़ा है. धमेüन्द्र-हेमा की धमा-चौकड़ी के बीच अमिताभ और सफेद साड़ी में लिपटी खामोश जया के बीच जो मौन संवाद चलता है उसको भला कौंन भूल सकता है. यही तो होली की खासियत है. इसी तरह कटी-पतंग का गीत आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली खेलेंगे हम होली...राजेश खन्ना और आशा पारेख के अलग अलग मनोभावों की वजह से ददीüला बन पड़ा है. गाना गाते गाते नायक नायिका की सफेद साड़ी पर रंग डाल देता है. तब नायिका इसी गीत में अपनी विवशता भी अभिव्यक्त करती है. नायक का प्रेम और प्रगाड़ हो जाता है.
चेतन आनन्द की फिल्म राजपूत में भी एक होली गीत हेमा धमेüन्द्र पर फिल्माया गया था - भागी रे भागी बृजबाला..राधा ने पकड़ा रंग डाला.....इस गीत में वही मस्ती मौजूद थी जो शोले में देखी गई थीं. यश चोपड़ा की सिलसिला में अमिताभ बच्चन की गाई होली -- रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे...के दृश्य में ही नायक की पत्नी अपने पति को उसकी प्रेमिका के प्रति आसाçक्त अनुभव करती है और भंग के नशे में सरोबार पति शमोüहया की हद का उल्लघंन कर बैठता है. फिल्म का यह गीत आज भी होली प्रेमियों को झूमा देता है. साहित्यकार राजेन्द्रसिह बेदी ने अपनी लिखी कहानी वाली फिल्म फागुन बनाई थीं. कथानक के अनुसार धनवान नायिका लेखक नायक से विवाह कर लेती है. माता पिता इसके पक्ष में नहीं है. विवश हो नायक घर जवांई बन जाता है.होली के दिन नायिका परिवार के साथ नाच गा रही है-पिया संग खेलूं होली फागुन आयो रे...तभी नायक आता है और पिचकारी का रंग नायिका पर डाल देता है. नायिका के पिता को यह अप्रिय लगता है. उनका मन रखने के लिए नायिका नायक को भला-बुरा कह देती है. मंहगी साड़ी खराब होने पर वह नाराज होती है. नायक यह व्यवहार सहन नहीं कर पाता और घर छोड़ कर चला जाता है और परिस्थितियां उसे पागलखाने तक पहुंचा देती है. इस फिल्म का अन्त सुखान्त था. पति की भूमिका धमेüन्द्र और पत्नी की भूमिका वहीदा रहमान ने की थीं.
यदि होली का वास्तविक आनन्द लेना तो श्याम बेनेगल के निदेüशन में बनी फिल्म सरदारी बेगम की होली सुनिए. वनराज भाटिया ने इसे होली के हर्ष में स्वरबद्ध किया है. स्मृति पर यह चित्रित है.........
अब के कान्हा जो आए पलट के
होली खेलूंगी मैं अब के डट के.........
रवि के. गुरुबक्षाणी
स्ट्रीट number 5 , रविग्राम, तेलीबांधा
रायपुर (छत्तीसगढ़) 492006

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