Monday, March 8, 2010

शफी इनामदार--अभिनय की सशक्त पगडंडी



फ्लैश बैक ...

13 मार्च-स्मरण दिवस---------------------रवि के. गुरुबक्षाणी.
शफी इनामदार का नाम सामने आते ही एक ऐसे प्रतिभाशाली कलाकार का नाम सामने आता है जो रंगमंच की दुनिया से आया बेजोड़ अदाकार था. चरित्र अभिनेताओं की कतार में उनका नाम हमेशा आदरपूर्वक लिया जाता है. टीवी फिल्में और नाटकों की बात करे तो शफी का नाम सफल नाटकों के मंचन में सबसे पहले लिया जाएगा. वैसे उनकी प्रतिभा पवित्र जल की तरह थीं जिसमें में उपयोग करे वैसी बन जाती थीं. कोई भी पात्र विशेष हो शफी को भूमिका सौंप देने का मतलब चादर पहनकर सो जाना था.

कुछ कलाकार ऐसे होते है जिनकी उपस्थिति का ऐसा दर्शकों के विशाल वर्ग से नहीं बल्कि उनके किए काम से होता है. ऐसे कलाकारों की तुलना महानगर में बने हाई-वे से की जा सकती है जिसमें चलने पर खुशी तो मिलती पर हाई-वे जुडऩे वाली पगडंडी पर चलने की संतुष्टि का अपना एक अलग मजा है. शफी इनामदार अभिनय की सशक्त पगडंडी थे. मुंबई में पले बढ़े शफी इनामदार कॉलेज के दिनों से ही नाटकों से जुड़ गए थे. हिन्दी, गुजराती और मराठी तीनों रंगमंच पर शफी की तूती बोला करती थीं. उनके योगदान को रंगमंचीय परिप्रेक्ष्य में भुलाना नामुमुकन है. कालेज की पढ़ाई के बाद शफी, कादर खान और प्रवीण जोशी के साथ जुड़ गए. उन्होंने नीला कमरा, अदा, अपन तो भाई ऐसे नाटकों में खूब नाम कमाया. शफी बर्हुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे अभिनेता होने के साथ साथ नाट्यकार, निर्देशक, निर्माता, कॉमेडियन और चरित्र अभिनेता थे. सफल होने के बाद शफी ने अपना नाट्य ग्रुप हम बनाया और फिर उन्होंने तमाम हिन्दी नाटकों का निर्माण, निर्देशन और अभिनय भी किया. उनका सबसे ज्यादा मशहूर नाटक है बॉ रिटायर थई छे (मां रिटायर हो रही हेै). इस नाटक के हिन्दी गुजराती और मराठी में 500 से ज्यादा शो हुए है. उनके अन्य पापुलर नाटकों में डाक्टर तमे पन, शबाना द सैकंड और टोखर का नाम शामिल है.
शफी को सेल्युलायड के परदे पर लाने का श्रेय गोविन्द निहलानी जी को तो छोटे परदे पर लाने का श्र्ेय मंजुला सिन्हा को जाता है. गोविंद निहलानी ने शफी को विजेता में काम दिया. टीवी की बात करें तो शफी का हास्य धारावाहिक ये जो है जिदंगी भला कौंन भूल सकता है? इसमें रंजीत बने शफी और रेणु बनीं स्वरुप संपत की जोड़ी ने नया इतिहास बनाया था. इस समय दूरदर्शन घुटनों के बल चल रहा था. इस धारावाहिक की लोकप्रियता ने टीवी का नाम घरघर में लोकप्रिय कर दिया. सोप आपेरा शब्द की शुरुआत इसी धारावाहिक से हुई थीं. एक भुल्लकड़ पति के रुप में शफी ने बेमिसाल अभिनय किया था. 52 एपीसोड के बाद शफी ने जब इस धारावाहिक को छोड़ा तो फिर वह क्रेज नहीं रह पाया था इस धारावाहिक का. शफी ने आल द बेस्ट , तेरी भी चुप मेरी भी चुप फिलिप्स टाप-10,खट्टा-मीठा आदि धारावाहिको में काम किया था.
जहां तक फिल्मों की बात है तो शफी ने हर प्रकार की भूमिका निभाई. अर्धसत्य, आज की आवाज, मृत्युदाता, घायल, हिप हिप हुर्रे, यशवंत आदि फिल्में एक लाईन में याद आती हैं. शफी ने अपने निर्देशन में हम दोनों फिल्म का निर्माण भी किया था. इसमें नाना पाटेकर और रिषी कपूर की जोड़ी थीं. शफी इनामदार का दर्शक वर्ग भले बहुत बड़ा न रहा हो, पर यह सच है कि मनोरंजन के कई क्षेत्रों में सक्रिय शफी एक मिसाल तो कायल कर ही गए हैं. अभिनेता बनने से पहले वे बहुत बढिय़ा इंसान थे. उनके साथ काम कर चुके कलाकार मानते है कि शफी प्रेरक व्यक्तित्व के धनी थे. वे हमेशा बेहतर करने के लिए तैयार रहते थे. उन्होंने कभी भी अपनी भूमिका को लोकर नखरे बाजी नहीं की. वे सीधे सादे इंसान थे. यही उनकी खूबी थीं.

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