Tuesday, February 16, 2010

ओमप्रकाश--कहीं मौत का अभिनय तो नहीं किया ?
















ओमप्रकाश--कहीं मौत का अभिनय तो नहीं किया ?
21 फरवरी को स्मरण दिवस पर विशेष.................
ओमप्रकाश का पूरा नाम ओमप्रकाश बक्शी था. उनकी शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई थीं. उनमें कला के प्रति रुचि शुरु से थीं. लगभग 12 वर्ष की आयु में उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरु कर दी. 1937 में ओमप्रकाश ने ऑल इंडिया रेडियों सीलोन में 25 रुपये वेतन में नौकरी की थीं. रेडियो पर उनका फतेहदीन कार्यक्रम बहुत पसंद किया गया. हिन्दी फिल्म जगत में ओमप्रकाश का प्रवेश बड़े फिल्मी अंदाज में हुआ. वे अपने एक मित्र के यहां शादी में गए हुए थे, जहां दलसुख पंचोली ने उन्हें देखा. फिर पंचौली ने तार भेजकर उन्हें लाहौर बुलवाया और फिल्म दासी के लिए 80 रुपये वेतन पर अनुबंधित कर लिया. उनकी पहली फिल्म दासी 1950 में प्रदर्शित हुई थीं. यह ओमप्रकाश की पहली बोलती फिल्म थीं. संगीतकार सी.रामचंद्र से ओमप्रकाश की अच्छी पटती थीं. इन दोनों ने मिलकर दुनिया गोल है, झंकार, लकीरे नामक फिल्म का निर्माण किया. उसके बाद ओमप्रकाश ने खुद की फिल्म कंपनी बनाई और भैयाजी, गेटवे आफ इंडिया, चाचा जिदांबाद, संजोग आदि फिल्मों का निर्माण किया. बहुत कम लोग जानते हैं कि ओमप्रकाश ने कन्हैया फिल्म का निर्माण भी किया था, जिसमें राज कपूर और नूतन की मुख्य भूमिका थीं.
जिस खुले दिल से ओमप्रकाश ने दुनियादारी निभाई थीं इसके ठीक विपरित उनके अंतिम दिन गुजरे. उन्हीं दिनों ओमप्रकाश ने अपने साक्षात्कार में कहा था-सभी साथी एक एक करके चले गए.आगा, मुकरी, गोप, मोहनचोटी, कन्हैयालाल, मदनपुरी, केश्टो मुकर्जी आदि चले गए. बड़ा भाई बख्शीजंग बहादुर, छोटा भाई पाछी, बहनोई लालाजी, पत्नी प्रभा सभी तो चले गए...लाहौर में पैदा हुआ. बचपन में चंचल था. रामलीला प्ले में सीता बना करता था. क्लासिकल संगीत की खुजली थीं-10 साल सीखा. रेडियो सीलोन में खुद के लिखे प्रोग्राम पेश किया करता था. मेरा प्रोग्राम बहुत पापुलर हुआ. लोग मुझे देखते तो फतेहदीन नाम से पुकारते थे. असली नाम पर यह नाम हावी होने लगा.
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जिदंगी मुझ पर मेहरबान रही है. मैं जब फिल्मों में आया तो दूसरा विश्वयुध्द खत्म ही हुआ था. उन दिनों हिंदी फिल्मों में बहुत बड़े सितारे मोतीलाल, अशोककुमार, और पृथ्वीराज हुआ करते थे. मुझे एक कलाकार के रुप में अपनी सीमाओं का वास्तव में ज्ञान नहीं था. पौराणिक या ग्रामीण पात्रों को छोड़ मैंने सारे पात्र किए हैं. अपने समय में लोग मुझे डायनेमो कहा करते थे. मुझे जीवन में सफलता, असफलता और सराहना सभी कुछ मिले हैं. कई रंगारंग व्यक्ति मेरे जीवन में आए हैं. इनमें चार्ली चैपलिन, पर्ल एस.बक, सामरसेट मॉम,फ्रेंक काप्रा, जवाहरलाल नेहरुजी भी शामिल हैं.
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मैंने कई फाकापरस्ती के दिन भी देखे हैं. ऐसी भी हालत आई जब मैं तीन दिन तक भूखा रहा. मुझे याद है इसी हालात में दादर खुदादाद पर खड़ा था.भूख के मारे मुझे चक्कर से आने लगे ऐसा लगा कि अभी मैं गिर ही पड़ूंगा. करीब की एक होटल में दाखिल हुआ. बढिय़ा खाना खाकर और लस्सी पीकर बाहर जाने लगा तो मुझे पकड़ लिया गया. मैनेजर को अपनी मजबूरी बता दी और 16 रुपयो का बिल फिर कभी देने का वादा किया. मैनेजर को तरस आ गया वह मान गया. एक दिन जयंत देसाई ने मुझे काम पर रख लिया और 5000 रुपये दिए. मैंने इतनी बड़ी रकम पहली बार देखी थीं. सबसे पहले होटल वाले का बिल चुकाया था और 100 पैकेट सिगरेट के खरीद लिए. दोस्तो ये रोचक क्षण थे ओमप्रकाश के जीवन के.
ओमप्रकाश ने 350 के आसपास फिल्मों में काम किया. उनकी प्रमुख फिल्मों में पड़ोसन, जूली, दस लाख, चुपके-चुपके, बैराग, शराबी, नमक हलाल, प्याक किए जा, खानदान, चौकीदार,लावारिस, आंधी,लोफर, जंजीर आदि शामिल है. उनकी अंतिम फिल्म नौकर बीवी का थीं. अमिताभ बच्चन की फिल्मों में वे खासे सराहे गए थे. नमकहलाल का दद्दू और शराबी के मुंशीलाल को भला कौंन भूल सकता है?
---------------------------------------रवि के. गुरुबक्षाणी.
स्ट्रीट 5, रविग्राम (तेलीबांधा) रायपुर छग 492006
मोबाईल -८१०९२२४४६८

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