Saturday, February 13, 2010

फिल्म फेयर पुरस्कार संदेह के घेरे में .....???




सुपरस्टार आमिर खान की फिल्म '3-इडियट्स' भले ही वर्ष 2009 की सबसे बड़ी हिट साबित हुई हो लेकिन अपराध से जुड़ी कहानी पर आधारित विशाल भारद्वाज की फिल्म 'कमीने' ने 55वें फिल्मफेयर पुरस्कारों के लिए नामांकन हासिल करने की दौड़ में उसे पीछे छोड़ दिया है।
'3-इडियट्स' को विभिन्न वर्गो में कुल सात नामांकन मिले हैं जबकि 'कमीने' को नौ और सैफ अली खान के घरेलू पड्रक्शन कंपनी की फिल्म 'लव आज कल' ने आठ नामांकन पाने करने में सफलता हासिल की है।
'लव आज कल' में सैफ के साथ दीपिका पादुकोण ने प्रमुख भूमिका निभाई है जबकि 'कमीने' में शाहिद कपूर और प्रियंका चोपड़ा ने बेहतरीन अभिनय किया है।
भारद्वाज की फिल्म 'कमीने' और '3-इडियट्स' को मुख्य रूप से सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री वर्गो के लिए नामांकित किया गया है।
'3-इडियट्स' को सर्वश्रेष्ठ संगीत और सर्वश्रेष्ठ गीत वर्ग में नामांकन नहीं मिला है जबकि 'कमीने' इन वर्गों में नामांकन पाने में सफल रही है।

दोस्तों ये कितनी शर्म की बात है की समाज के हर वर्ग को पसंद आने वाली फिल्म पर कमीने जैसी बिना सर पैर की फिल्म को ज्यादा नामाकन मिला है। यह बिना किसी संदेह के हमारे नैतिक पतन का प्रमाण है । अब समय आ गया है की फिल्मो में अभिनय को लेकर मिलने वाले पुरुस्कारों की पोल खोली जाये। सैफ अली खान को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार का विवाद अभी थमा नहीं है की, ३-ईडियट को छोड़ एक ऐसी फिल्म के कलाकारों को पुरस्कार देने की साजिश रची जा रही है जो गंदे तरीके से फिल्माई गयी है ।३-ईडियट एक ऐसी फिल्म है जिसने हिंदी सिनेमा में रीपीट वेल्यु को वापस प्राप्त किया है। आप लोगो में अनेक लोगो ने इसे एक से अधिक बार देखा होगा। बहुत दिनों बाद एक ऐसी फिल्म आई है जो परिवार के साथ बैठ कर देखी जा सकती है। पुरे देश भर में एकमत से सराही जा रही ईस फिल्म को आल टाइम ग्रेट की श्रेणी में रखा गया है। फिल्म की रिकॉर्ड तोड़ कमाई एक अलग मुद्दा है। पैसो की पूरी वसूली वाली बात भी ईस फिल्म के माध्यम से खरी उतरती है। पूरी फिल्म में हास्य को इतनी बारीकी से फिल्माया गया है की कई गंदे सीन भी हसने पर मजबूर कर देते है। बजाये रोने के।


भाषण को तोड़ मरोड़ कर पढ़ करने वाला सीन वल्गर होते हुए भी इतनी जल्दी गुजर जाता है की लोगो को बाद में याद आता है की अरे यार इस सीन पर तो नेतागिरी करी जा सकती थी। खैर छोडो आल इज वेल । हम बात कर रहे थे की कमीने को ज्याद नामाकन देकर फिल्म फेयर वालो ने खुद ही अपनी पैरो पर कुल्हाड़ी चला दी है। अब देश भर का यह प्रतिष्ठित सम्मान भी संदेह के घेरे में आ गया है। निष्पक्ष होने की बात करने वाले ये तथा कथित पुरुस्कार कब निष्पक्ष बनेंगे...........??

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