Wednesday, May 26, 2010

मोहन माखीजानी से बने थे मैक मोहन



विदाई आलेख-------रवि के. गुरुबक्षाणी
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मैक मोहन अब नहीं रहे जैसे ही यह समाचार सुना दिल धक से रह गया क्योंकि मैक मोहन से मेरी बातें उनकी ई-मेल आईडी सांभा एट दि रेट जीमेल डॉट काम पर होती रहती थीं.
नवभारत की तरफ से उनकी सुपुत्री विनती से बात हुई मोबाइल न. 09820227232 पर. उन्होंने बताया कि वे साल भर से कैंसर की लाईलाज बीमारी से पीडि़त थे. उनकी आखिरी फिल्म अतिथि के लिए बात चल रही थी पर वे नहीं कर पाए. फिल्मकारों के अनुसार वे जिदांदिल इंसान थे.
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मैक मोहन भले ही सांभा के पात्र के नाम से जाने पहचाने जाते रहे हो पर हर फिल्मकार जानता है कि वे अभिनय के प्रति समर्पित कलाकार थे. रंगमंच से लेकर फिल्मों तक की यात्रा में उन्होंने हमेशा अभिनय में कमाल की योग्यता दिखाई थीं. शोले से शुरुआत करते है. इस फिल्म में मैकमोहन का सिर्फ चार शब्दों का डायलाग था-सरदार सिर्फ 2 आदमी थे. और इन चार शब्दों ने मैक मोहन को देशभर में सांभा नाम से अमर कर दिया. सिर्फ चार शब्दों के डायलाग पर इतनी ख्याति मिलना उल्लेखनीय घटना है फिल्मी इतिहास में.
मैक मोहन मूलत: चरित्र अभिनेता थे. उन्होंने 200 के लगभग फिल्में की थीं. मैक मोहन की पहली फिल्म हकीकत थीं. जो 1962 के भारत-चीन युद््ध पर बनी चेतन आनंद की प्रसिद्ध फिल्म थीं. 1964 में प्रदर्शित इस फिल्म में मैक मोहन ने राम स्वरुप के छोटे भाई की भूमिका अभिनित की थीं. फिल्म में मैक मोहन की भूमिका सभी ने सराही थीं. ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने नकारात्मक भूमिकाएं की थीं. इसकी वजह उनकी दाढ़ी थीं जो उन्हें बहुत प्रिय थीं. वे चाहते थे कि वे अपनी प्रिय दाढ़ी के बिना फिल्में ना करे और यही दाढ़ी का शौक उन्हें सकारात्मक भूमिकाओं से परे ले गया.
अपने परिवार के बारे में उन्होंने बताया था-मेरे पिता जो सेना में ऊँचे पद पर थे. वे चाहते थे कि मैं भी सेना में जाऊँ कितुं उन्होंने मुझ पर कभी अपनी पसंद कभी लादी नहीं. उन्होंने मुझे खुली छूट दी कि जो भी करना है इज्जत के साथ करो. मेरी पसंद फिल्में थी इसलिए मैं फिल्मों में आ गया. मेरे किरदार को हीरो से पिटना लिखा है तो पिटता ही रहा हूँ..
मैक मोहन नाम का राज क्या है--ऐसा है हम लोग सिंधी हैं. जब पिताजी इंगलैंड गए तो माखीजानी से अंग्रेजों ने मैक जानी कर दिया. माखीजानी को वे मैक जानी पुकारने लगे. बस फिर हम भी बन गए मोहन माखीजानी से मैक जानी. फिर हमने नाम के मैक मोहन रख दिया. इस प्रकार सेना के अफसर का बेटा बुरा आदमी (फिल्मों में) बन गया. अभिनय की बारीकियां मैक मोहन ने फिल्माया स्टूडियों में सुबोध मुखर्जी से सीखी. वे तब संजीव कुमार जी के बैच में थे. उनकी पहली फिल्म में उन्होंने इंद्राणी मुखर्जी के देवर का रोल किया जो सराहा गया था. चेतन आनंद के साथ उन्होंने सह-निर्देशक का काम भी देखा था फिल्म आखिरी खत के दौरान. मैक मोहन क्रिकेट के स्टेट लेवल खेल चुके थे और बहुत अच्छे क्रिकेटर माने जाते थे. उनकी पढ़ाई लिखाई लखनऊ में और मुंबई में हुई थीं. मैक मोहन का पसंदीदा रोल फिल्म आया सावन झूम के का है. इस फिल्म में उन्होंने एक पागल प्रेमी का रोल निभाया था जो प्रेमिका के धोखा देने के बाद सुध-बुध खो बैठता है. इस रोल के निभाने से पहले मैक मोहन 2 दिन तक पागलखाने में रहे थे. मैक मोहन कभी भी लीडिंग विलेन नहीं बन पाए क्या इसका उनको मलाल था तो जवाब है बिल्कुल नहीं क्योंकि वे खुद को कदकाठी के कारण इस लायक नहीं समझते थे. उन्होंने हालीवुड की कुछ फिल्में भी की थीं. मशहूर निर्देशक केविन की फिल्म मिस्ट्री आफ डार्क जंगल में मैक मोहन थे. मैक मोहन की पत्नी पेशे से डाक्टर है. वे अपने पीछे 2 लड़कियां और 1 सुपुत्र छोड़ गए हैं.
मैक मोहन की मशहूर फिल्मों में शोले, जंजीर, मजबूर, दीवार, मेमसाब, सुहाना सफर, कसौटी, सलाखें, प्रेम रोग, डॉन, खून पसीना, हेरा फेरी, जानी दुश्मन, काला पत्थर, कर्ज, टक्कर, कुर्बानी, अलीबाबा और चालीस चोर, लक बाई चांस आदि शामिल है.

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