Sunday, March 21, 2010

लौट आओ मीना, तुम कहां हो...?






























कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
दर्द की देवी मीना कुमारी की अमर कहानी
मेरे ही ख्वाब मेरे लिए जहर बन गए मेरे तसव्वुरात ने डस लिया मुझे
-----३१ मार्च- स्मरण दिवस पर विशेष---
मीना कुमारी भारतीय सिने इतिहास की एक ऐसी अदाकारा थीं, जिनके खामोश होठों और अनकहे आसुंओं की भाषा कोई नहीं समझ पाया. चार दशकों तक गमजदा जिदंगी का बोझ उठाने के बाद वे इस दुनिया से चली गई और छोड़ गई अपने पीछे तन्हाइयों की एक लंबी कविता. मीना कुमारी ऐसी बदनसीब तारिका थीं जिसे हर किसी ने ठगा...अपनों ने भी और परायों ने भी...उन्हें न तो मां बनने का सुख मिला, न ही वह कभी पत्नी का सुख पा सकीं. चार दशकों तक वह इसी सुख की तलाश में भटकतीं रहीं. वे परदे पर अभिनय को जीती थीं, और निजी जिदंगी में दर्द को...जिदंगी के इसी दर्द ने ही उन्हें शायर बना दिया था.
अभिनय और सुदंरता का संगम. जैसे खुशबू और खूबसूरती सिमट कर गुलाब में जा बसी हैं उसी तरह अभिनय और नीर-क्षीर की तरह बसी थी मीना कुमारी में. आज मीना कुमारी को हमसे जुदा हुए 38 साल गुजर चुके हैं. इन 38 सालों में इंडस्ट्री में कई अभिनेत्रियां आईं और गईं. आनेवाली हर अभिनेत्री मीना कुमारी बनने का सपना लेकर आतीं है और थोड़ा बहुत नाम कमाकर लौट जाती है. वे सब कुछ बनीं पर मीना कुमारी न बन सकीं. मीना कुमारी ने जो अपनी अभिनय क्षमता और सुदंरता से जो गगनचुंबी इमारत खड़ी की है. आज की अभिनेत्रियां उस इमारत को शिखर करने का सपना देखतीं है. हर सपना मीना कुमारी और पाकीजा पर आकर ही दम क्यों तोड़ देता है? इसलिए कि ये दोनों फिल्म इंडस्ट्री को मिली ऐसी विरासतें हैं जिनको पीढिय़ां गुजर जाने के बाद भी याद रखा जाएगा.
मीना कुमारी एक महान अभिनेत्री और नारी की त्रासदी की प्रतीक थीं. ये शब्द किसी बंबईयां फिल्म की प्रचार सामग्री का हिस्सा लगते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि हम निहायत ही सादा शब्दों में किसी असीम शख्सियत को अभिव्यक्त कर देते हैं. लगभग दो दशकों तक हिन्दी सिनेमा की चोटी की अभिनेत्री रही मीना कुमारी की निजी जिदंगी, उनकी वैवाहिक त्रासदी, रिश्तेदारों द्वारा किया गया शोषण, प्यार की अबुझ प्यास, आत्मघाती मदिरापान तथा एक शायरा के रुप में उनके मूल्यांकन आदि के बारे में विवादों की कमी नहीं रही. लेकिन इस बारे में कोई दो राय नहीं कि मीना कुमारी जैसी बेमिसाल और बेहतरीन फनकार आनेवाले कई दशकों में देखने में नहीं आएगी.

मीना कुमारी जैसी अभिनेत्री की कला का आंकलन करने से पहले महान अभिनय को थोड़ा परिभाषित करना जरुरी है. यों तो परिभाषाएं बनाना भी आसान नहीं है लेकिन ख्वाजा अहमद अब्बास के इस कथन में काफी दम है कि सच्चा अभिनय वह है कि जब आपको लगे कि व्यक्ति अभिमय कर ही नहीं रहा है. प्रसिध्द अग्रेंजी समीक्षक सी.ई.मांटेगयू ने अभिनय के तीन तत्व बतलाएं है सुनम्य (प्लास्टिक) भौतिक माध्यम, परिष्कृत तकनीक
लगा. लेकिन कोहिनूर, शरारात और आजाद में उन्होंने हास्य भूमिकाएं भी की. शोहरत और दौलत उनके कदम चूमने लगीं. सच तो ी चालाकी और जिस पात्र का अभिनय किया जा रहा है उसके भीतर उतरने का आनंद. पहले के अंतर्गत हम शरीर को या किन्हीं विशिष्ट अंगों के उपयोग को लेते है.
चार्ली चैप्लिन की तरह अपने समस्त शरीर का उपयोग करने वाले अभिनेता बहुत कम होते है लेकिन मीना कुमारी ने अपने अभिनय के दौरान अपनी आँखों का भरपूर फायदा उठाया. अपनी आँखों से ही वे करुणा, दर्द, पाकीजगी, प्यार, नाराजगी तथा मदहोशी भी इतनी सहजता से व्यक्त कर जाती थीं कि उनके साथ अभिनय करते हुए कई तपे हुए कलाकार तक डगमगा जाते थे. एक निर्देशक के अनुसार तो उनकी आँखों के सामने दिलीप कुमार तक विचलित हो जाया करते थे.
बतौर बाल कलाकार मीना ने कुछ फिल्में कीं. इसके बाद बतौर नायिका मीना ने बच्चों का दिल, मदहोश, मूर्ति, दुनिया एक सराय आदि से शुरुआत की लेकिन बात बनी नहीं. बैजू बावरा की सफलता क बाद मीना कुमारी के कैरियर में एक नया मोड़ आया. शारदा, एक ही रास्ता, परिणीता, फूल और पत्थर, मंझली दीदी, नूरजहां, साहब बीवी और गुलाम के साथ ही वे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाती गई. जल्द ही उसे ट्रेजिडी क्वीन कहा जाने यह है कि अगर मीना अपने चेहरे पर मेकअप नहीं चढ़ाती तो अली बख्श का परिवार दरिद्रता के सागर में डूबता उतरता रहता, मीना ने इस परिवार के दुख दर्द को अपनी मेहनत से सुख शांति में तब्दील कर दिया था. इसके बाद मीना के जीवन में पाकीजा फिल्म का आगमन हुआ. इस फिल्म ने मीना कुमारी को वह ऊंचाई दी जिसके लिए कलाकार जिदंगी भर तरसता है. मीना कुमारी और कमाल अमरोही इस फिल्म की वजह से अमर हो गए. ऐसा नहीं है कि मीना कुमारी के जीवन में पाकीजा के अलावा कुछ नहीं है. बैजू बावरा, चित्रलेखा, परिणिता, दुश्मन, मेरे अपने में भी उनकी भूमिकाएं अपना अलग प्रभाव छोड़ती हैं. मेरे अपने में गुलजार ने उनकी प्रतिभा को सही रुप से बाहर निकाला. सही मायने में मेरे अपने की बूढ़ी औरत का किरदार मीना द्वारा निभाए गए किरदारों में काफी ऊपर रखा जा सकता है.
दुश्मन का रोल हालंाकि केन्द्रीय नहीं था लेकिन फिल्म देख कर बाहर निकलते समय वहीं किरदार जेहन पर याद रहता है. दुश्मन में मीना के बहुत ज्यादा संवाद नहीं थे. सिर्फ उनकी आँखें और चेहरे के भाव ही थे जिन्होंने किरदार में जान डाल दी थीं. इसी तरह साहब बीवी और गुलाम में निभाया छोटी बहू का किरदार सही मायनों में चुनौतीभरा और उलझा हुआ किरदार था. उम्मीद नहीं था कि मीना कुमारी को दर्शक इस रुप में स्वीकार करेंगे. छोटी बहू का किरदार बाद में उनकी जिदंगी पर बुरी तरह छा गया था. उसी तरह चित्रलेखा किरदार . आमतौर पर देखा गया है कि दो बार बनीं फिल्मों में दूसरी बार बनीं फिल्म वह पकड़ नहीं रख पाती जो पहली में होती है. यही बात उस फिल्म के रिकरदारों पर भी लागू होती है जो इनमें काम कर रहे होते है. बहुत कम कलाकार इस चक्र को तोड़ पाए हैं. इन कलाकारों में मीना कुमारी और दिलीप कुमार के नाम खास तौर पर लिए जा सकते हैं. दिलीप कुमार ने देवदास द्वारा अपने को सिध्द किया. पहले बनीं देवदास में के..एल.सहगल थे. इसी तरह मीना ने चित्रलेखा में अपने में आपको साबित किया. पहले बनी चित्रलेखा में उसकी मशहुर अदाकारा महताब थीं. महताब उस फिल्म से जिस ऊंचाई पर पहुंची थीं, उससे कम ऊंचाई परमीना कुमारी भी नहीं थीं. यह मीना के अभिनय का कमाल था. उन्होंने जिस भूमिका को निभाया उससे उसे प्यार हो गया. उनके सशक्त अभिन. का प्राण उनकी आँखें और संवाद अदायगी थीं. उनकी आवाज में एक कशिश थीं. एक दर्द था. सच तो यह है कि मीना कुमारी एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने कभी अभिनय तो किया ही नहीं. अभिनय का आधा काम तो उनकी आँखें कर देती थीं. फिल्म आरती का वह सीन इसकी मिसाल है . जिसमें प्रदीप कुमार और मीना कुमारी एक दूसरे को देख रहे होते है और बैक ग्राउंड में कभी तो मिलेगी..बहारों की मंजिल राही.. गाना बज रहा होता है. हालांकि वह युग गला काट प्रतियोगिता का नहीं था, तब भी प्रतिस्पर्धा तो थी ही. एक से एक आला दरजे की अभिनेत्रियां मीना के सामने थीं. मधुबाला जैसी सुंदर, नरगिस जैसी भावप्रणव अभिनेत्रियों के साथ शुध्द प्रतिस्पर्धा के जरिए अपना मकाम बनाना आसान नहीं था.
कमाल अमरोही के साथ उन्होंने घर से विद्रोह करके निकाह किया था. कमाल आजाद ख्यालों की मीना को परदे में रखना चाहते थे. पर मीना को यह मंजूर न था. लिहाजा दोनों में तलाक हुआ. इस अलगांव ने मीना को तोड़ दिया. प्यार की इसी प्यास ने उसे विद्रोही बना दिया. वे जानकी कुटीर में रहने आ गई. अब उनके साथी थे शराब, सिगरेट और शायरी. अभिनय के साथ शायरी भी उनके खीन में थीं. मीना के नाना प्यारेलाल शाकिर मेरठवी शायर थे. मीना कुमारी की शायरी में एकांत, वीराना और दिल टूटने की खनक साफ सुनाई देती है-
न जाने किसके चटखने की
यह आवाज आई
और एहसास दरारों में
कैसे पहुंचा
नगर वीरान झरोखे खामोश
मुंडेरे चुप
खामोशी
उफ कि खलाओं का
दम घुटने लगा...

मोहब्बत की तलाश ने मीना को एक ऐसी अंधेरी जगह तक पहुंचा दिया जहां सब कुछ सुनसान था.अकेलापन, अंधेरा, इस अंधेरे में भी प्यार का जलता दीपक लेकर बैठी रहीं. कभी तो आएगा कोई तो आएगा. या मोहब्बत आएगी या मौत आएगी. मीना की शायरी में मोहब्बत और मौत को एक ही नाम दिया गया है. दोनों से ही मीना को प्यार था-
हर एक मोड़ पर बस
दो ही नाम मिलते है
मौत कह लो जो
मोहब्बत नहीं कहने पाओ.

लेकिन मोहब्बत की तलाश में उनके हाथ लगी नाकामियां बदनामियां और न जाने क्या क्या...प्यार उनके लिए छलावा सिध्द हुआ, वे एक ऐसे रास्ते पर आगे बढ़ती जा रहीं थीं जिसकी कोई मंजिल नहीं थीं. उनकी चाह ही उनके लिए नासूर बन गई. मीना ने यह बात कितने दर्द के सात लिखी है-
मेरे ही ख्वाब मेरे लिए
जहर बन गए
तेरे तसव्वुरात ने
डस लिया मुझे...

प्यार में मीना कुमारी बुरी तरह नाकाम रही. प्यार के हर सिलसिले का अंत दिल तोडऩे वाला निकला. चाहे यह सिलसिला परिवार के साथ हो, या कमाल अमरोही के साथ हो या किसी और के साथ. इस छलावे को मीना ने महसूस किया-
कहां शुरु हुआ यह
सिलसिला कहां टूटे
न इस सिरे का पता है
न इस सिरे का पता

आज हमारे बीच मीना नहीं है. हमारे बीच जो है उनमें अधिकांश व्यावसायिक रवैये वाली अभिनेत्रियां है.ऐसे में मीना कुमारी की याद शिद्दत के साथ आती है. क्या अब कोई मीना पैदा होगी? शायद नहीं, बेहतर है मीना वापस आ जाए. लौट आओ मीना ...तुम कहां हो...?


मीना कुमारी एक नजर में
मीना कुमारी का असली नाम महजबीं था.
मीना कुमारी के पिता अलीबख्श, मां इकबाल बेगम तथा दो बहनें माधुरी और खुर्शीद थीं.
मीना कुमारी के पिता अलीबख्श उर्दू नाटक कम्पनी में हारमोनियम बजाया करते थे.
मीना कुमारी के नाना प्यारेलाल शाकिर मेरठवी के नाम शायरी किया करते थे.
मीना कुमारी को 1954 में बैजू बावरा के लिए पहली बार फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला.
मीना कुमारी को जानवरों से बहुत डर लगता था. वे कुत्ते, बिल्ली और चूहों से डरती थी.
दिलीप कुमार के साथ ने अमर में काफी सारा काम किया, लेकिन बाद में फिल्म मधुबाला को लेकर बनीं. दिलीप कुमार के साथ मीना कुमारी ने फुटपाथ, कोहिनूर, यहूदी आजाद आदि में काम किया.
मीना कुमारी बुधवार के दिन को बड़ा अपशकुनी मानतीं थी.
मीना कुमारी को पत्थर जमा करने का बड़ा शौक था. पंडित नेहरु और लाल बहादुर शास्त्री के पास के पत्थर भी उनके यहां मौजूद थे.
मीना कुमारी को पान खाने का शौक था. वे बहुत ज्यादा पान खाती थीं.
मीना कुमारी अच्छी शायर भी थीं. उनकी लिखी कुछ गजलों को मशहूर लेखक-निर्देशक गुलजार ने मीना कुमारी की शायरी नामक पुस्तक में सम्पादित किया है.
मीना कुमारी को अंधेरे और एकांत से बहुत प्यार था. जब तब वे लाइट आफ करके खिड़की के पास खड़ी रहती थीं.
मीना कुमारी को हर चीज में नमक डालकर खाने की आदत थीं. चाय, दूध, लस्सी, कोकाकोला आदि में वे नमक डालकर उपयोग करतीं थी.

मजहबीं से मीना

फिल्म एक ही भूल के दौरान मजहबीं से मीना का नाम मीना कुमारी हुआ. फिल्म के निर्माता ने मीना को कामिनी, प्रभा, विमला और मीना में से किसी एक नाम को चुनने के लिए कहा, इनमें से मीना नाम चुना गया. बाद में इसमें कुमारी और जोड़ दिया गया. बाल अभिनेत्री के रुप में मीना ने फर्ज ए वतन, लेदर फेस, एक ही भूल, बहन, गरीब की पूजा, प्रतिज्ञा, लाल हवेली कसौटी आदि फिल्में कीं.
उंगली का कटना

मीना कुमारी के बचपन की एक घटना है. उस समय उनकी उम्र मुश्किल से 8-9 साल की रहीं होगी. मीना कुमारी परिवार के साथ पंजाब स्थित अपने गांव जा रहीं थी. ट्रेन ने एक बोगदे के अंदर प्रवेश किया और एकदम अंधेरा छा गया. ढ़ेर सारी धूल और धुंआ कम्पार्टमेंट के अंदर घुस गया. मीना ने जल्दी से खिड़की बंद की. लेकिन इसी बीच उनकी अंगुली खिड़की में फंस गई. अंधेरे में उनकी मां और बहन को कुछ समझ में नहीं आया कि मीना क्यों चीखी. जब ट्रेन बोगदे से बाहर निकली तब पता चला कि मीना की उंगली कट गई है.
शराब का सहारा

जानकी कुटीर में आकर मीना निहायत अकेली हो गई. उनको लगा कि लोग उनसे नहीं उनके पैसे से प्यार करते हैं. प्यार की प्यास ने मीना कुमारी को दो नए साथी दिए, शराब और सिगरेट. उनके प्यार और रोमांस के सच्चे-झूठे किस्से जानकी कुटीर में ही जवान हुए. रात-दिन चिंता के कारण मीना बीमार पड़ गई और आखिर उन्हें लंदन जाना ही पड़ा.
कमाल अमरोही से प्यार
मीना महा बलेश्वर से बम्बई आ रहीं थी, इसी बीच उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया. मीना को पूना के एक अस्पताल में दाखिल कराया गया. चार दिन बाद फिल्म अनारकली के निर्माता के साथ कमाल अमरोही आए. निर्माता मीना के पिता से मिलने गए. कमरे में मीना और कमाल अमरोही रह गए. कमाल साहब ने टेबल पर रखा जूस का गिलास उठाया और मीना को पिलाया. दोनों की नजरें मिली और प्यार हो गया. बाद में कमाल ने मीना से निकाह किया. भिंडी बाजार के एक मकान में हुआ यह निकाह लंबे समय तक गुप्त रहा.
अफवाहें

मीना कुमारी का नाम अपने दिनों में हर एक्टर से जुड़ा. दरअसल मीना में एक सम्मोहन था. जो हर मर्द को आकर्षित कर लेता था. वैसे उनके साथ प्रदीप कुमार, धर्मेन्द्र और भारत भूषण के साथ जुड़ा था. प्रदीप कुमार के अनुसार साथ काम करके हम काफी करीब आ गए थे. सच तो यह है कि मैं उनके निकटतम मित्रों में से एक था. इस मित्रवत सम्बंध को लोग समझ गए होंगे. पर इसका मुझे अंदाजा नहीं था.
अलगांव

कमाल अमरोही और मीना का साथ ज्यादा दिन नहीं चला. दोनें के बीच दरार आ गई. आखिर मीना ने कमाल अमरोही का साथ छोड़ दिया. वे जानकी कुटीर में रहने आ गई. उस समय मशहूर फिल्म पाकीजा निर्माणाधीन थीं. यह 1964 की बात है. मीना-कमाल के अलगाव से लगा कि अब शायद ही पाकीजा पूरी हो पाए. लेकिन इस अलगाव के बाद भी किसी तरह फिल्म पूरी हो गई.

मीना कुमारी की कविताएं

१.
ये सिलसिले कहाँ टूटे

कहाँ शुरु हुए
कहाँ टूटे
थका थका सा बदन
आह रुह बोझल बोझल
कहाँ पे हाथ से
कुछ छूट गया याद नहीं
न जाने किसके चटखने की
ये आवाज आई
और अहसास दरारों में
कैसे जा पहुंचा
नगर विरान
झरोखें खामोश
मुंडेरें चुप
खामोशी, उफ्फ
कि खलाओं का दम भी घुटने लगा
अचानक आ गई हो मौत
वक्त को जैसे
हाय रफ्तार की नब्जें रुकी,
दिल बैठ गए
ये सिलसिले कहाँ टूटे
न इस सिरे को पता है
न उस सिरे को पता.

२.
टुकड़े-टुकड़े

टुकड़े टुकड़े दिन बीता
धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आंचल था
उतनी ही सौगात मिली.
जब चाहा दिल को समझें
हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो
ले फिर तुमको मात मिली.
मातें कैसी घातें क्या
चलते रहता आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया
बचनी भी साथ मिली

३.
दर्द का रिश्ता

मसर्रत पे रिवाजों
का सख्त पहरा है,
न जाने कौंन सी
उम्मीद पे दिल ठहरा है
तेरी आंखों में
झलकते हुए
इस गम की कसम
ए दोस्त
दर्द का रिश्ता
बहुत गहरा है
---------------------- रवि के. गुरुबक्षाणी
स्ट्रीट न. 5, रविग्राम, तेलीबांधा, रायपुर छ.ग. 492006
मोबाइल--8109224468
ईमेल--

1 comment:

  1. bahut mehnat ki gayi hai, jaankari ke liye dhanyawad.

    Prritiy

    ReplyDelete