Wednesday, May 26, 2010

राज कपूर-नीली आँखों का जादूगर






स्मरण दिवस-2 जून पर विशेष----------------रवि के. गुरुबक्षाणी
उसकी आँखें नीली थीं और उन्हें वह दो तरह से इस्तेमाल किया करता था-पहला भोलेपन के लिए और दूसरे दुनिया भर के ख्वाबों की फसल उगाने के लिए. इन दोनों वाक्यों को घटित करने में वह अपनी तरह से कामयाब रहा. उसनें प्रेम का अपना गणित बनाया और हँसी में करुणा की अंर्तधारा का भी. वह खुद के गावदीपन से हँसा सकता था, मगर वह हँसी दर्द से फूटती लगती थीं. कंधे उचकाते हुए या बत्तख की तरह कदमों को दौड़ाते हुए उसनें जो मैनेरिज्म खड़ा किया था, वही उसकी हैसियत नहीं थीं. सपने बुनने में उसे महारथ हासिल थीं और उनके टूटने की सूरत में पैदा हुई पीड़ा को पेश करने में भी.
हमारी पीढ़ी ने जिस राजकपूर को देखा, वो बॉबी, सत्यम् शिवम् सुंदरम् प्रेम-रोग और राम तेरी गंगा मैली का राजकपूर था. और बड़ा सच यह है कि बॉक्स ऑफिस का गणित जैसा राकेश रोशन और यशराज फिल्मस् को आता है. वैसा ही गणित राजकपूर को भी आता था, यह बात अलग है कि वह अपने अलग आँकड़े इस्तेमाल करता था. और, इसमें हैरत नहीं कि अपनी सफलता के लिए हर आदमी को अपने फॉर्मूले ईजाद करने पड़ते हैं. राजकपूर ने मुहब्बत और औरत का फार्मूला ईजाद कर लिया था. जो आग वाले आर.के. के धुर प्रेमी है, उन्हें सत्यम शिवम सुंदरम के आर.के. को तौलने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए.
राजकपूर सिर्फ समीक्षकों में जिंदा नहीं रहना चाहते थे. आजादी के तत्काल बाद नव निर्माण की जद्दोजहद में लगे लोगों के बीच रुमानियत का स्वप्नशील संसार देने और विचारों का फ्लैवर इस्तेमाल करने का सूत्र उसनें पकड़ लिया था. निर्दोष भारतीय चरित्र की प्रतिनिधि छबि को अपनाने का गुर उसे समझ में आ गया था. वह औसत आदमी का दर्द सेल्यूलाइड पर उतारने में बेजोड़ साबित हुआ.
दरअसल राजकपूर यथार्थ तो पेश करना चाहता था, मगर उसमें अपनी ऐसी छबि की स्थापना का मकसद भी शामिल था जो उसे स्टार का दर्जा भी दे सके. उसके लिए भले ही उसे चार्ली चैपलिन की शैली उठा लेनी पड़ी. जागते रहो का राजकपूर अद्भुत राजकपूर है, लेकिन उसकी व्यावसायिक असफलता से दुखी, बॉक्स ऑफिस के लिए तमाम जतन करता हुआ भी एक राजकपूर है. बरसात से राजकपूर ने सेक्स और संगीत का संयुक्त फॉर्मूला इस्तेमाल करना शुरु किया था. यह धीरे-धीरे गंगा मैली तक अनुपातिक रुप से और इस्तेमाल की दृष्टि से बदलता चला गया. दिलचस्प यह है कि राजकपूर ने अपने गुरु अब्बास की प्रगतिशीलता को स्वीकार कर लिया लेकिन नरगिस की कमर से उनका हाथ नहीं छूटा.
इसमें तो कोई शक नहीं कि राजकपूर में विलक्षण प्रतिभा थीं. लेकिन उस प्रतिभा का इस्तेमाल करते हुए उस पर रोजी रोटी और सिताराई ख्वाहिशें शामिल थीं. बेशक शीरी 420, आवारा और जागते रहो हर हाल में पूरी तरह से आदर के साथ उल्लेखित होगी, बूट पालिश के लिए बतौर निर्माता आर.के. को सम्मान के साथ याद किया जाएगा. तीसरी कसम के हीरामन को जीने वाले अभिनेता को कोई कम नहीं आंक सकता ( राजकपूर की इस भारी ऊँचाई में मुकेश, शंकर-जयकिशन, शैंलेद्र-हसरत, अब्बास और राधू कर्माकर, वी.पी. साठे को कद भी शामिल है. अगर अब्बास न मिले होते तो आर.के. का रोमांस, महज रोमांस से ऊपर कुछ नहीं होता.)
मगर राजकपूर के सिनेमा का जो उत्तरार्ध सच है, वह एक लोकप्रिय सितारे, एक यथार्थ को सपने में मिलाकर सम्मोहित करने वाले चतुर निर्देशक और जेब के लिए पूरा ख्याल रखने वाले निर्माता का सच है.
संगम की वैजयंतीमाला का स्विमिंग सूट, जोकर की सिमी की टांगे, जिस देश में गंगा बहती है की पद्मिनी का स्नान, बॉबी की डिम्पल की बिकनीं, सत्यम शिवम के झरनें में नहाती जीनत और गंगा मैली की दूध पिलाती-नहाती-बुलाती मंदाकिनी ये सब राजकपूर की दी हुई हैं. लोग तर्क देते हैं कि तुम्हें मंदाकिनी और डिम्पल अश्लील क्यों लगती हैं? मैं सवाल करता हूँ पोस्टर पर और प्रचार में बिकनी और झरना स्नान ही क्यों दिखाया जाता है? और फिर तुम्हारा मकसद इस उद्घोष से समन्वित बताया जा रहा हो कि नदी और नारी की उदात्तता की कहानी है, तब दर्शक को सिर्फ मंदाकिनी का स्नान ही याद रहता है?
पंडित नेहरु ने एक बार राजकपूर और दिलीपकुमार को भारत माता की दो आँखें कहकर संबोधित किया था. सोवियत संघ में पं. नेहरु के बाद सर्वाधिक लोकप्रियता राजकपूर को मिली थीं. राजकपूर की फिल्म आवारा और शीरी 420 सोवियत संघ के सिनेमा घरों में बगैर रुके लगातार 2 साल चलीं थीं. चीन के राष्ट्रपति माओत्से तुंग की मनपसंद फिल्म आवारा थीं. आवारा के 18 भाषाओं में संस्करण रुस, मध्यपूर्व, चीन और जापान के लिए जारी हुए थे. प्रथम अंतरिक्ष यात्री गगारिन जब भारत आए तो उन्होंने राजक पूर का अभिवादन आवारा हूँ कह कर किया था. बहरहाल, यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि जोकर राजकपूर अलग राजकपूर था. उसके बाद जोकर की असफलता से पराजित महसूस करता हुआ राजकपूर बॉबी में अपने पुराने मूल्यों को अलग कमरे में बंद करके चाबी खो आया. उसकी नीली आँखों में अभिनय के लिहाज से भरपूर भोलापन था, मगर उन्हीं आँखों के पीछे एक लोकप्रिय स्टार, सफल निर्देशक और व्यावायिक दिमाग वाले निर्माता की बॉक्स ऑफिसीय दृष्टि भी लगातार मौजूद थीं. और यहीं, उन आँखों का सच भी था.

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