Tuesday, July 6, 2010

सोहराब मोदी---- ऐतिहासिक फिल्मों का सिकंदर





फिल्मों में कुछ कलाकार ऐसे होते है जो अपने नाम मात्र से विश्वास की कसौटी पर खरे उतरते है. सोहराब मोदी ऐसी ही फिल्मी शख्सियत है. बात चाहे फिल्म निर्माण की हो, अभिनय की हो अथवा संवाद बोलने की शैली की हो. सोहराब मोदी का जवाब नहीं था.कहते है कि उनके संवाद सुनने के लिए अंधें भी उनकी फिल्में देखने जाते थे. उनकी सशक्त संवाद अदायगी के कारण उन्हें मिनर्वा का शेर कहा जाता था. हिन्दी फिल्म जगत को समृद्ध एवं गौरवशाली स्वरुप प्रदान करने में जिन दो-चार लब्दप्रतिष्ठ फिल्मकारों का योगदान को भुलाना संभव नहीं, उनमें से एक नाम अभिनेता-फिल्मकार सोहराब मोदी का भी है. सच तो यह है कि सोहराब मोदी का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. अपने लगभग पांच दशकीय फिल्मी जीवन में कुल 38 फिल्मों का निर्माण, 27 फिल्मों का निर्देशन और 31 फिल्मों में अभिनय करने वाले सोहराब मोदी को भारतीय के हीरक इतिहास का साक्षी एवं फिल्मों की शुरुआती दौर का सशक्त प्रमाण माना जा सकता है.
सोहराब मोदी के पिता रामपुर (उ.प्र.) के नवाब के सुपरिटेंडेट थे. बड़े भाई रुस्तम नाटकों में अभिनय और निर्देशन किया करते थे. उनकी एक नाटक कम्पनी भी थीं. घर में ही अभिनय का माहौल मिलने के कारण सोहराब मोदी भी नाटकों में अभिनय करने की इच्छा को दबा नहीं पाए. नाटकों में वे अभिनय और निर्देशन करने लगे. जल्द ही फिल्मों की तरफ उनका ध्यान गया. प्रथम सवाक फिल्म आलमआरा (1931) से प्रेरित होकर फिल्म निर्माण में वे आ गए. अपनी फिल्म निर्माण संस्था मिनर्वा मूवीटोन की स्थापना की. इसी के बैनर तले सोहराब मोदी ने सर्वप्रथम हेमलेट फिल्म का निर्माण एवं निर्देशन किया. 1935 में प्रदर्शित यह फिल्म सोहराब मोदी के जीवन्त अभिनय एवं दक्ष निर्देशन के कारण काफी लोकप्रिय हुई थीं. फिल्म की आशातीत सफलता ने सोहराब मोदी जैसे रचनाकार -सर्जक को नए जोश, ऊर्जा एवं उमंग से भर दिया. फलत: उसके बाद से फिल्म निर्माण, निर्देशन एवं अभिनय का जो क्रम शुरु हुआ, तो जीवन भर तक बदस्तूर जारी रहा.
सोहराब मोदी की खासियत रही कि उनके द्वारा हरेक तरह की सामाजिक, धार्मिक, सुधारवादी और ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण किया गया और प्राय: हरेक तरह के चरित्र को उन्होंने बेहद संजीदगी से जीया. हैमलेट के बाद मिनर्वा मूवीटोन के बैनर तले दूसरी फिल्म थी- सईद-ए-हवस. उसके बाद खूनी की खून फिल्म उन्होंने बनाई. उस फिल्म में उनकी नायिका थीं-नसीम बानो. उस समय की टाप अभिनेत्री थीं. इन दोनों ही फिल्मों में उन्होंने जीवन की विदूषताओं, विसंगतियों एवं विडंबनाओं को अत्यंत सूक्ष्मता एवं संवेदनशीलता के साथ परदे पर चित्रित किया. दोनों ही फिल्में अपने समय में खासी सफल एवं चर्चित भी रहीं थीं.
वैसे तो सोहराब मोदी ने प्राय: हर तरह की फिल्मों का निर्माण किया, पर ऐतिहासिक फिल्में बनाने में उनकी टक्कर का कोई दूसरा फिल्मकार नहीं हुआ. उनकी खूबी थीं कि वे जब किसी ऐतिहासिक विषय पर फिल्म बनाते थे तो उसके निर्माण से पहले काफी शोध किया करते थे और संतुष्ट होने पर ही उस पर फिल्म बनाने का काम शुरु करते थे. यहीं कारण था कि उनके द्वारा निर्मित ऐतिहासिक विषयों पर आधारित फिल्मों की पटकथा, संवाद, पात्र चयन सभी कुछ अपने आप में अद्भुत हुआ करते थे. ऐतिहासिक तथ्यों एवं संदर्भों को मूल रुप से पेश करने में उन्हें महारत हासिल थीं. अपनी लगभग सभी फिल्मों में नायक की भूमिका सोहराब मोदी ही निभाया करते थे. उनका व्यक्तित्व भी इन भूमिकाओं के लिए बिल्कुल फिट बैठता था. उनकी गंभीर एवं सधी आवाज ऐतिहासिक चरित्रों में जान डाल देती थीं. उनका इस कोटि की सर्वाधिक चर्चित एवं लोकप्रिय फिल्मों के रुप में पुकार (1939) एवं सिकंदर (1941) का नाम लिया जा सकता है. पुराने लोगों को पुकार का संग्राम सिंह और सिकंदर का पोरस का चरित्र आज भी याद आता है. दोनों ही फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के कारण उन्हें देश-विदेश में लोकप्रियता मिली थीं. अपनी आरंभिक दोनों ऐतिहासिक फिल्मों की जर्बदस्त सफलता से उत्साहित होकर सोहराब मोदी ने अन्य कई बेहतरीन ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण किया. जिसमें पृथ्वीवल्लभ, एक दिन का सुल्तान, शीशमहल, झांसी की रानी, नौशेरवान-ए-आदिल आदि को विशेष रुप से रेखांकित किया जा सकता है.
सामाजिक फिल्मों निर्माण के क्षेत्र में भी सोहराब मोदी का योगदान स्तुत्य है क्योंकि सामाजिक विषयों पर फिल्म निर्माण के जरिए भी उन्होंने समाज में व्याप्त अनेक तरह की विसंगतियों एवं समस्याओं से समाज को साक्षात्कार कराया. उनकी इस कोटि की फिल्मों में शराबखोरी की समस्या पर बनीं फिल्म मीठा जहर, तलाक की समस्या पर बनीं फिल्म डाइवोर्स, आम आदमी की दैनिक समस्याओं पर बनीं फिल्म मझंधार, कैदियो की समस्याओं पर बनीं फिल्म जेलर आदि काफी सफल रहीं थीं. उनकी अन्य सामाजिक फिल्मों में भरोसा, दौलत, खान बहादुर, फिर मिलेंगे, मेरा घर मेरा बच्चे, समय बड़ा बलवान आदि विशेष रुप से उल्लेखनीय है.
फिल्म निर्माण, निर्देशन एवं अभिनय के दौरान सोहराब मोदी ने अनेक पुरस्कार देश-विदेश में जीते. इनमें दादा साहेब फालके पुरस्कार (1979) के अलावा मिर्जा गालिब (1954) फिल्म के लिए राष्ट्रपति का स्वर्ण-रजत पुरस्कार प्रमुख है.
सोहराब मोदी को याद करना मतलब कि ठाठ बाट से फिल्मी जीवन जीने वालों को याद करना है. परदे पर चित्रित अपनी खूबसूरत अदाकारी एवं बेहतरीन सृजनात्मकता के कारण सोहराब मोदी सदियों तक भारतीय फिल्माकाश पर विराजमान रहेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं.
--------------------------------रवि के. गुरुबक्षाणी.

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