Saturday, July 31, 2010

मुरलीधरन--शिखर पुरुष की शाही विदा







-------- रविन्दर.
कैन्डी के छोटे से खूबसूरत शहर में जन्में मुरलीधरन ने जब क्रिकेट खेल की शुरुआत की थी तो कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वे इस खेल में ऐसा रिकॉर्ड बनाएंगे, जिसे तोडऩा किसी भी अन्य क्रिकेटर के लिए दु:स्वप्न साबित होगा. जी हाँ, विकेटों के शहँशाह मुथैय्या मुरलीधरन ने 800 विकेटों के जिस ऊँच्चांक को छुआ है. उस तक पहुँचना आसमान छुने के बराबर ही है. गॉल टेस्ट से इस फिरकी जादूगर की गेंदबाजीं सिर्फ चर्चाओं में शामिल होगी. उनके सॅन्यास से टेस्ट खेलने वाले बल्लेबाजों ने राहत की सांस ली है.
जरा इस फिरकी गेंदबाज का आत्मविश्वास तो देखिए. भारत के खिलाफ टेस्ट शुरु होने से पहले टेस्ट के बाद टेस्ट क्रिकेट छोडऩे की घोषणा कर दी और टेस्टों में 800 विकेटों के लक्ष्य को पूरा करने की आशा भी जताई. टेस्ट में 8 विकेट लेना आसान नहीं होता वो भी भारतीय बल्लेबाजों के, जिन्हें विश्वभर में स्पिन खेलने का महारथी कहा जाता है. भारतीय पारी के आखिरी विकेट तक सस्पेंस कायम रहा कि मुरली इस लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे कि नहीं..पूरे विश्व के क्रिकेट प्रेमियों की निगाहें टकटकी बांधे लगी रहीे थीं. अपने आखिरी टेस्ट की दोनों पारियों में मुरली ने क्या कमाल की गेंदबाजी की. धोनी का विकेट जिस गेंद पर और जिस तरीके से लिया वह हमेशा याद रहेगा.
मुरली ने 5 साल पहले ही क्रिकेट छोडऩे का मन बना लिया था. लेकिन चकिंग के आरोप और आस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों की छींटाकशी से मुरली ने अपना मन बदला. मुरली की गेंदबाजी पर जयवर्धने ने सर्वाधिक कैच 76 लपके हैं. किसी एक क्षेत्ररक्षक के रुप में एक ही गेंदबाज की गेंदबाजी पर कैचों का यह विश्व रिकॉर्ड है. मुरली ने 67 वीं बार एक पारी में 5 या इससे ज्यादा विकेट लेने का कारनामा दिखाया है. इतना ही नहीं मुरली ने 22 बार 10 या ज्यादा विकेट भी लिए है. 17 अप्रेल 1972 को कैन्डी में पैदा हुए मुरलीधरन शुरु में तेज गेंदबाज बनना चाहते थे. लेकिन एक एक्सीडेंट में हाथ फ्रेक्चर हो गया और उसी हाथ से इस जादूगर ने अच्छे अच्छे बल्लेबाजों को नचा डाला. मुरली ने लंका के अलावा एशियाई इलेवन, चेन्नई सुपर किंग, आईसीसी वल्र्ड इलेवन, कान्डुराता, केन्ट, लंकाशायर, तमिल युनियन क्रिकेट और एथलेटिक क्लब की टीमों से भी क्रिकेट खेला है. 5 फुट 7 इंच के मुरली मूलत: सीधे हाथ के ऑफब्रेक गेंदबाज है. उसनें सेंट एंथोनीस कालेज, केन्डी में अपनी पढ़ाई पूरी की. मुरली ने अपना पहला टेस्ट 28 अगस्त से 2 सितम्बर 1992 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ कोलंबो में खेला था. जबकि वे 1989-90 में प्रथम स्तर की क्रिकेट खेलने आ गए थे.
मुरली 6 कप्तानों के साथ क्रिकेट खेला, उसनें कभी भी स्वयं कप्तान बनने की कोशिश नहीं की. इसका उन्हें मलाल है कि चयनकर्ताओं ने उन्हें कभी कप्तानी का मौका नहीं दिया. मुरली की गेंदबाजी का रहस्य जानने के लिए कई बार रिसर्च किए गए हैं. प्रसिद्ध क्रिकेट समीक्षक डगलस जार्डिन लिखते हैं कि मुरली की गेंदबाजी एक रहस्य है. वह घरेलु मैदानों पर तो ठीक पर विश्वभर के हर मैदान पर कैसे समान क्षमता से स्पिन करा लेते है. मैंने ऐसी अद्भुत क्षमता वाला क्रिकेटर नहीं देखा. मुरली की गेंदबाजी दरअसल एक प्रेरणा है. शारीरिक विक्षमताओं के बाद भी अदम्य साहस की बदौलत इतिहास बनाया जा सकता है. आर्थोडेक्स फिंगर स्पिनर मुरली के लिए शेन वार्न हमेशा राइवल बने रहे. दोनों की प्रतिदं्वदिता देखते बनती थीं. मुरली को गेंदबाजी में इतनी महारात हासिल थीं कि उसनें दूसरा शैली की गेंद का ईजाद कर डाला.
मुरली के जीवन में अजीब मोड़ तब आया जब आस्ट्रेलियाई अम्पायर डेरेल हेयर ने 1995 बॉक्सिंग डे मैच में उनकी गेंदो को नोबाल करार देने लगे. उन पर गेंदो को थ्रो करने का गंभीर आरोप लगा. इसके तीन साल पहले रास एमर्सन ने भी उनकी गेंदो पर .हीं आरोप जड़ा था. उनका बायोकेमिकल टेस्ट वैस्टर्न आस्ट्रेलिया की युनिवर्सिटी और हागकांग युनिवर्सिटी में किया गया. बाद में तमाम परिक्षाओं के बाद मुरली निर्दोष साबित हुए. उनकी गेंदबाजी को आप्टिकल इलुशन आफ थ्रोइंग का नाम दिया गया.
मुरली जब भी टेस्ट खेलने जाते तो थोड़ा नर्वसनेस महसुस करते थे. जब तक उन्हें गेंद नहीं थमा ली जाती थीं. 800 विकेट लेने से पहले 5 दिन बड़ी मुश्किल से गुजरे. मुझे आखिरी तक उम्मीद थी कि मैं लक्ष्य हासिल कर लुंगा. मीडिया का प्रेशर मेरे मैनेजर कुशील हैंडल कर रहे थे. उन्होंने मुझे पूरी क्षमता से गेंदबाजी करने के लिए कहा था. मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थीं. टेस्ट छोडऩे का निर्णय कठिन नहीं था के जवाब में मुरली कहते हैं-नहीं ये तो आसान निर्णय था. वेस्टइंडीज दौरे के बाद नवम्बर में मैंने मन बनाया था कि अब टेस्ट क्रिकेट छोड़ूंगा. मैं हमेशा टेस्ट को मिस करुंगा. नए स्पिनरों को मौका भी मिलना चाहिए. इसके लिए थोड़ा क्लिनिकल फेक्टर भी शामिल है. मैंने एक मैच में स्पिनर की कमी पूरी करने के लिए तेज गेंदबाजी की जगह आफकटर का प्रयोग किया जो कामयाब गया, बस तभी से मन बना डाला कि अब आफ स्पिन करुंगा. मेरा कोई रोल मॉडल नहीं था. मैं विकेट लेने से ज्यादा जीतने में विश्वास करता हूँ. मेरा फेवरेट विकेट कौंन सा था कहना मुश्किल है. मुझे मई 2004 में वाल्श का 519 और फिर 2007 में शेन वॉर्न का 708 विकेटों का रिकॉर्ड तोडऩा सर्वाधिक खुशी का क्षण लगता है जब मैंने पाल कांिलगवुड को आउट किया था. इंगलैंड के खिलाफ 16 विकेटों का प्रदर्शन ओवल का यादगार था. इस मैच के सारे स्पैल मैंने मेहनत से किए थे. मुझे कुकाबुरा, एसजी और ड्युक में से एसजी गेंद से गेंदबाजी करना मुश्किल लगा, पर मैंने हार्ड वर्क किया. ब्रुस यार्डली और डेव वाटमोर ने मुझे गेंदबाजी के रनअप की बारीकियाँ समझाई. इससे मेरी बाडी के वैरिएशन और मुवमेंट में फर्क आया. गेंदो में वैरायटी दिखी. इससे पहले मैं क्रीज का उपयोग करके ड्रीफटिंग का सहारा लेता था.
मैंने सचिन और लारा के खिलाफ गेंदबाजी करने में असहज महसुस किया. ये दोनों क्रिकेट के मास्टर बैट्समेन है. मैंने हमेशा समकालीन स्पिनरों के साथ इंजाय किया. अनिल कुबंले, शेन वार्न, सकलैन, हरभजन, वैटोरी के साथ मजा आता था. 1996 का विश्वकप जीतना मेरे लिए यादगार लम्हा है. मैं काउंटी क्रिकेट और आईपीएल में खेलना जारी रखूंगा. और हां 2011 का विश्वकप भी खेलना चाहता हूँ . मैं उपलब्ध हूँ. चयनकर्ताओं को बता दिया है.

रविन्दर.
स्ट्रीट न. 5, गल्र्स स्कूल के सामने, गुरुबक्षाणी निवास, रविग्राम (तेलीबांधा) रायपुर छ.ग. 492006.

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