Saturday, July 31, 2010








सारी-सारी रात तेरी याद सताए- गीताबाली
फ्लैश बैक-----
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प्रदीप कुमार के अभिनय का स्तर चाहे जो कुछ भी रहा हो, लेकिन उन्होंने एक बार गीता बाली के अभिनय के बारे में कहा था, अभिनय की परी इनसानी लिबास पहन कर आयी थीं. वल्लाह क्या बात है. यानि गुणी गुण वेत्ती यह उक्ति सच नहीं है. काबिल रत्न पारखी खुद कभी रत्न होता ही नहीं. ढ़ेर सारे गीत गाने के बाद लता मंगेशकर के दिल में गीता बाली के लिए साफ्ट कार्नर है. लता दी ने भी एक अवसर पर कहा था- गीता बाली मुझे बहुत पसंद थीं. वह सतही तौर पर खूबसूरत भले ही न हो, लेकिन वह थीं बड़ी प्यारी. ठीक ठीक लंबाई, भरा पूरा शरीर और मोटी-मोटी आँखें. उसका व्यवहार भी सौहार्दपूर्ण था. उसके चेहरे पर गजब का ग्रेस था.
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गीता बाली के सौंदर्य के बारे में दो राय हो सकती है, लेकिन उसका स्फूर्त और सहज-सुंदर अभिनय सदा ही विवादातीत रहा है. उसकी सूरत में एक अजीब सी अनोखी अपील थीं. वह उसके फूले हुए गालों में थीं या अपने पर भरोसा है तो एक दांव लगा ले कहकर ललकारने वाली निगाहों में थीं- यह कहना तो मुश्किल है. पर शाम ढले खिडक़ी ढले इशारे करने को उकसाने वाला आकर्षण उसमें अवश्य था. तनूजा और जया भादुड़ी का चटपटा शोखपन उसमें था और वहीदा रहमान की तरल संवेदना क्षमता भी थीं, इसलिए सुन बैरी बालम सच बोल..(बावरे नैन) जैसा नटखट प्रणय गीत जिस खूबी से उसनें अभिनित किया, उसी कुशलता से रुठ के तुम चले गए..(जल तरंग) जैसे व्याकुल विरह गीत के जरिए अपनी मनस्थिति का सार्थक एहसास भी वह दिला सकी. देवानंद की नायिका के रुप में वह बाजी, फरार, मिलाप, जाल, जलजला, फेरी, और पाकिटमार में तो बहुचर्चित थी ही, लेकिन झमेला और अलबेला में भगवान की नायिका बनने पर भी उसकी आव में कमी नहीं आई. अलबेला का रंबा रंबा नृत्य बड़ा सामान्य था. लेकिन गीताबाली कंधे उचकाती हुए इस कदर मोहक अंदाज में नाचती रही कि देखते ही बनता है.
केदार शर्मा की सुहागरात उसकी पहली फिल्म थीं (इसके पहले वह पंचोली की फिल्म पतझड़ के एक नृत्य में दिखाई दी थीं). इसके बाद उसके सितारे बुलंदी पर तो रहे, लेकिन उसे एक भी भूमिका नहीं मिली, जिसे उल्लेखनीय कहा जा सके. देवानंद के अलावा उसे जिन नायको के साथ काम करने का मौका मिला उनमें चोटी के नायको की संख्या बहुत कम थीं. दिलीप कुमार तो उसके पल्ले पड़ा ही नहीं और राज कपूर सिर्फ एक बार बावरे नैन में, अशोक कुमार (रागरंग) मोतीलाल (लालटेन) बलराज साहनी (सी.आई.डी.गर्ल) बड़ी मुश्किल से उसे मिल सके. वरना तो जिदंगी के सुनहरे दिन उसे प्रेम अदीब (भोली) जयराज (गरीबी) रहमान (शादी की रात) भारत भूषण (कवि) अभि भट्टाचार्य (नैना) कमल कपूर (अमीर) करण दीवान (सौ का नोट) शेखर (नया घर) सज्जन (नजरिया) अमरनाथ (लचक) जसवंत (होटल) और सुरेश (अजी बस शुक्रिया) के साथ अभिनय करने में ही बिताने पड़े. बरसों वह फालतू फिल्मों में बढिय़ा अभिनय करती रहीं. तथापि उनके अभिनय में आंच नहीं आई. न ही उनके चहेतो में कोई कमी आई.
केदार शर्मा , गुरुदत्त और देवानंद के साथ उसका नाम उछलता रहा, लेकिन उसमें अपने से दो साल छोटे शम्मी कपूर से विवाह कर तहलका मचा दिया था. ब्याहता बनकर कपूर खानदान की गृहस्थी में प्रवेश करने वाली शायद वह पहली नायिका थीं. पूरी फिल्म में मर्दाना भूमिका करने वाली (रंगीन रातें) गीताबाली एकमात्र ऐसी अभिनेत्री थीं. दुनियाभर में ऐसी कोई अन्य मिसाल नहीं है. अचानक माता की बीमारी ने उसे हमसे छीन लिया और राजिन्दर सिंह बेदी की फिल्म रानो को साकार करने का सपना अधूरा रह गया. बेदी को विश्वास नहीं था कि अन्य कोई अभिनेत्री इस भूमिका के साथ न्याय कर पाएगी इसलिए उन्होंने इस फिल्म को हमेशा के लिए बंद कर दिया. गीता बाली सादगी की प्रतिमूर्ति थीं जिसमें असीमित सौंदर्य छुपा था.
जितना दिया, उससे ज्यादा लौटाया--शम्मी कपूर
शम्मी कपूर अपने शादी के पूर्व दिनों को याद करते हुए बताते है, मैं आज भी वह दिन नहीं भूला हूँ, जब हम शादी से पहले अलग अलग कार में निकला करते थे और फिर थोड़ी दूर जाकर एक गाड़ी को रास्ते में कहीं खड़ी करके दोनों ही एक कार में एक साथ घुमने जाया करते थे. वह अपने पैरों पर खड़ी होने वाली खुद्दार लडक़ी थीं. वह शूंटिंग पर कभी भी अपने भाई या माँ को साथ नहीं लाती थीं. वह हमेशा अकेली ही शूंटिंग पर आती थीं. सेट पर वह कभी भी शांत नहीं बैठा करती थीं. हमेशा कुछ न कुछ चुहलबाजी करती रहती थीं, लेकिन कैमरे के सामने आते ही उसका अंदाज बदल जाता था. यहीं गीताबाली का खासियत थीं. शम्मी आगे कहते है--मैंने जिदंगी में गीताबाली को जितना दिया, उससे ज्यादा उसनें मुझे लौटा दिया.
--------------------------------------------------- रवि के. गुरुबक्षाणी.
(लेखकीय सम्पर्क--- ह्म्.द्दह्वह्म्ड्ढड्ड3ड्डठ्ठद्बञ्चद्दद्वड्डद्बद्य.ष्शद्व)

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