Wednesday, October 6, 2010

-------- किशोर कुमार ------ 13 अक्टूबर--जन्मदिवस विशेष ..आए तुम याद मुझे , गाने लगी हर धड़कन .






..आए तुम याद मुझे , गाने लगी हर धड़कन ..
किशोर कुमार को अगर सिर्फ गायक के रुप में ही कलाकार माना जाए तो भी उनका अभिनय उनके गाए गीतों में साफ तौर पर झलकता है. यह बात अलग है कि किशोर दा फिल्मों की वह अजर अमर हस्ती थे जो हरफनमौला कलाकार के रुप में याद किए जाते हैं. इनके द्वारा अभिनीत कोई भी फिल्म देखिए आपको पूरे पैसे वसूल मिलेंगे. क्या आपको अन्य कोई भी ऐसा कलाकार याद आता है जिससे ऐसी गारंटी की उम्मीद की जाए..? नहीं ना. बस यही किशोर कुमार है.
किशोर कुमार ने जब परदे पर कदम रखा तब दादामुनि, दिलीप, राज और देव ने समुचे दर्शकों को आपस में बांट लिया था. बचे खुचे दर्शकों की पूंजी पर छुटभैये कलाकार जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे थे. ऐसे मायूस कलाकारों की सूची में अपना नाम दर्ज कराना किशोर कुमार को मंजूर नहीं था, वह अपना एक विशेष अंदाज ले कर आया. उसनें दर्शकों को अभिभूत कर दिया. दर्शक खुद-ब-खुद उसके पीछे चले आए, लेकिन उन्हें अपने खेमे में बांधे रखने के लिए इसनें कोई विशेष प्रयास नहीं किया. योजनाबद्ध तरीके सा आगे बढऩे की कल्पना शायद उसे मंजूर नहीं थी. अभिनेता के रुप में वह अपना क्रेज नहीं बना सका. इसके बावजूद चोटी की कई नायिकाओं के साथ काम करने का मौका उसे मिला.
किशोर कुमार ने अपने अभिनय की शुरुआत फिल्म शिकारी से की थीं जो 1946 में प्रदर्शित हुई थीं. मगर उन्हें लोकप्रियता मिलीं 1953 में प्रदर्शित हुई फिल्म हुई फिल्म लड़की से. इसके बाद के वर्षो में किशोर कुमार ने 80 फिल्मों में काम किया, जिनमें प्रमुख हैं पड़ोसन, चलती का नाम गाड़ी, दूर गगन की छांव में और हाफ टिकिट. फिल्म हाफ टिकिट के दौरान एक मजेदार घटना हुई इस गीत के संगीत निर्देशक थे सलिल चौधरी. लता मंगेशकर इस गीत की रिकॉर्डिग के लिए समय पर नहीं पहुँच सकीं तो किशोर ने सलिल चौधरी से कहा कि वे इस गीत को दोनों ही स्वरों में गा देंगे. सलिल दा ने सोचा कहीं किशोर मजाक तो नहीं कर रहा है. लेकिन बाद में उन्हें लगा कि किशोर इस मामले में वाकई गंभीर है तो उन्होंने सोचा कि इसे मौका देना चाहिए और इसके बाद आके सीढ़ी लगी जैसा एक मजेदार गीत किशोर कुमार ने पुरुष और महिला दोनों के स्वरों में गाया.
फिल्म हाफ टिकिट, चलती का नाम गाड़ी, पड़ोसन, और झुमरु जैसी फिल्मों में किशोर कुमार ने एक समर्थ अभिनेता के रुप में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया. लेकिन बाद में असंतुष्ट थे कि उन्हें गंभीर और संगीत से जुड़ी भूमिकाएं करने का मौका नहीं मिला. अपनी भूख मिटाने के लिए उन्होंने खुद ही फिल्मों का निर्माण किया. उन्होंने 1964 में दूर गगन की छांव में बनाई जिसका गीत कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन उनके दिल की आवाज बन गया. किशोर ने 1961 में झुमरु बनाई जिसमें अभिनेता गायक निर्देशन और गीतकार का दायित्व उन्होंने खुद निभाया था.
जब देश में आपातकाल का दौर था और हर कोई सत्ता पक्ष को खुश करने में लगा था , ऐसे समय में जब किशोर कुमार को दिल्ली में सरकारी पक्ष के समर्थन में आयोजित एक कार्यक्रम में गीत गाने का आमंत्रण मिला तो उसे उन्होंने ठुकरा दिया. उनके गाए गीतों को सरकारी नियंत्रित मीडिया आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रतिबंधित कर दिया गया. उनके गाए गीतों के रिकॉर्डस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया मगर किशोर इन सब बातों से बेफिक्र रहे. इतना सब कुछ होते हुए भी किशोर के प्रशंसकों में कमी नहीं आई.
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी किशोर कुमार वाकई एक प्रतिभाशाली गायक थे. वे कई बार विचित्र हरकत कर बैठते थे. जिससे लोग उन्हें पागल, सनकी और मूडी तक कह डालते थे. लेकिन किशोर को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. इस पर वे कहते थे--कौंन कहता है मैं पागल र्हू, पागल तो सारी दुनिया है, मैं नहीं. उन्होंने अपने घर के बाहर एक पट्टिका लगा रखी थी जिस पर उन्होंने छुज्जुराम नाम लिखा रखा था. अगर कोई उनसे मिलने आता था तो किशोर खुद उनसे कहते थे किशोर घर पर नहीं है. घर के बाहर एक और पट्टिका पर उन्होंने लिखवा रखा था--यह पागलखाना है इस घर में अपनी जोखिम पर प्रवेश करें. जब भी कोई पत्रकार उनसे मिलने जाता एक ना एक खबर ऐसी लाता जो सुर्खिया बनती थीं. मजाकिया शैली उनकी जिदंगी का अहम हिस्सा थीं. लेकिन जो लोग उन्हें करीब से जानते थे वे इस बात से वाकिफ थे कि इस शख्स के इस चेहरे के पीछे कई दर्द समाए हुए हैं, जिसनें चार शादियाँ की है. वे अपनी सारी पत्नियों को बंदरियां कहते थे क्योंकि वे बांद्रा में रहती थीं.
किशोर कुमार सही मायनों में अखिल भारतीय गायक थे. उन्होंने मात्र हिन्दी में ही नहीं , अपितु बंगला, पंजाबी, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में भी गीत गाए हैं. उन्होंने अपने जीवन में लगभग 35000 गीत गाए. 80 फिल्मों में अभिनय किया. 10 फिल्मों का निर्माण किया. और 8 फिल्मों में संगीत दिया.
किशोर का स्वर अंत तक आज के युवक की आवाज की प्रतिध्वनि रहा है. गीत चाहे हास्य रस का हो, चाहे दर्द का हो, चाहे आवारगी का, किशोर का स्वर पाकर वो साकार हो जाता है. तरह तरह की आवाज निकालने वाले यूडलिंग के बादशाह किशोर कुमार दूर गगन की छांव में चला गया है पर अपने गीतों द्वारा वे हमारे बीच अभी भी मौजुद है.
------- रवि के. गुरुबक्षाणी.